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________________ २३२ के समीप प्रव्रज्या स्वीकार की। मुनिराज श्री हनुमानजी, साधना के शिखर पर चढे और वीतराग सर्वज्ञ - सर्वदर्शी बने । फिर आयुकर्म पूर्ण होने पर मोक्ष को प्राप्त हुए । लक्ष्मणजी का देहावसान और लवणांकुश की मुक्ति हनुमानजी की दीक्षा के समाचार सुन कर रामभद्रजी ने विचार किया- “प्राप्त राज्य-वैभव और सुखभोग छोड़ कर हनुमान साधु क्यों बना ? क्या ऐसे उत्कृष्ट भोग बार-बार मिलते हैं ? ऐसे भोगों को छोड़ कर महाकष्टकारी दीक्षा लेने में उसने कौनसी बुद्धिमानी को ?” रामभद्रजी की ऐसी विचारधारा चल ही रही थी कि प्रथम स्वर्ग के स्वामी सौधर्मेन्द्र ने अवधिज्ञान से रामभद्रजी की चित्तवृत्ति जानने का प्रयत्न किया। उन्होंने अपनी देवसभा को सम्बोधित करते हुए कहा--" कर्म की कैसी विचित्र गति है, चरमशरीरी राम जैसे महापुरुष भी इस समय विषय-सुख की अनुमोदना और धर्म-साधना की अरुचि रखते हैं ? वास्तव में इसका मुख्य कारण राम-लक्ष्मण का परस्पर गाढ़-स्नेह सम्बन्ध है | यह बन्धु स्नेह ही उन्हें धर्म के अभिमुख नहीं होने देता ।" तीर्थंकर चरित्र ध्यापति कुलश्रेष्ठ ! आप सिधार गए," आदि । इन्द्र की यह बात सुन कर दो देव कौतुक वश अयोध्या में आये । उन्होंने अपनी वैक्रिय - लब्धि से ऐसा दृश्य उपस्थित किया कि जिससे अन्तःपुर की समस्त रानियाँ रोती विलाप करती और आक्रन्द करती दिखाई दी । वे 'हा, पद्य ! हा राम हा, अयोहम सब को छोड़ कर परलोक क्यों अचानक तथा असमय ही रानियों का आन्द तथा शोकमय वातावरण नेलक्ष्मण को आकर्षित किया । अपने ज्येष्ठ-बन्धु की मृत्यु की बात वे सहन नहीं कर सके तत्काल उनकी हृदयगति रुक गई और वे मृत्यु को प्राप्त हो गए । कर्म का विपाक गहन और अलंघ्य होता है । देवों को अपने कौतुक का ऐसा दुष्परिणाम देख कर पश्चात्ताप हुआ। वे खेदपूर्वक बोले -- "हा, हमने महापुरुष का घात कर दिया। हम कितने अधम हैं ।" आत्मनिन्दा करते हुए स्वस्थान चले गए । लक्ष्मणजी को मृत्यु प्राप्त जान कर सारा अन्तःपुर परिवार आॠन्द करने लगा । अन्तःपुर का विलाप तथा शोकोद्गार सुन कर रामभद्रजी तत्काल दौड़े आये और रानियों से बोले- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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