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तीर्थकर चरित्र
दो देव, स्वर्ग से च्यव कर तुम्हारी कुक्षी में आये हैं। वे पुत्र रूप में उत्पन्न हो कर अपने वंश की ध्वजा दिगन्त तक फहरावेंगे। यह उत्तम स्वप्न तुम्हें कल्याणकारी होगा, मंगलप्रद होगा और आनन्द में वृद्धि करेगा," किन्तु मुझे थोड़ी शंका यह होती है कि विमान में से अष्टापद पक्षी उतरे, यह कुछ ठीक नहीं लगता। सीता ने पति के मुख से स्वप्न फल बड़ी विनम्रता से ग्रहण किया और कहा--"प्रभो! धर्म तथा आपके महात्म्य से उत्तम फल की ही प्राप्ति होगी। अपने मन से सन्देह निकाल दें। गर्भ धारण के पश्चात् सीताजी, रामभद्रजी को विशेष प्रिय लगने लगी। वे सीता पर अत्यन्त प्रेम रखने लगे और उसकी प्रसन्नता के लिए विशेष प्रयत्न करने लगे।
सीताजी को सगर्भा जान कर तथा उसके प्रति पति का विशेष प्रेम देख कर उनकी सौतें उन पर विशेष द्वेष रखने लगी। ईर्षा से उनका हृदय जलने लगा। वे किसी भी प्रकार से सीताजी को अपमानित कर, पति और प्रजा की दृष्टि से गिराना चाहती थीं। उन्होंने मिल कर षड्यन्त्र रचा और सीता से प्रेमपूर्वक पूछा ;--"रावण आपके पास आता था। आपने उसे देखा ही होगा। यह बताइये कि उसका रूप कैसा था। आकृति राक्षस जैसी थी या देव जैसी ? आप एक पट पर लिख कर हमें बतावें।"
“बहिनों ! मैंने रावण के सामने ही नहीं देखा । वह आता तब मैं नीचे-पृथ्वी पर देखा करती । इसलिए मुझे उसके मुख आदि अंगों का तो ज्ञान ही नहीं हुआ। हाँ, उसके पाँवों पर दृष्टि पड़ती। मैंने उसके पाँव ही देखे हैं"--सीताजी ने कहा।
“अच्छा, आप रावण के चरणों का आलेखन कर के ही बता दें। हम उसी पर से कुछ अनुमान कर लेंगी"--सौतों ने आग्रह किया।
। को नहीं समझ सकी और सरल भाव से रावण के चरणों का आलेखन कर दिया। उस चरणचित्र को सपत्नियों ने ले लिया और अवसर पा कर रामभद्रजी को बता कर कहने लगी;
“नाथ ! यह देखिये, आपकी अत्यन्त प्रिय महारानी का कृत्य । यह रावण पर अत्यन्त आसवत है । उसका स्मरण करती रहती है और उसके चरणों का आलेखन कर अपना भक्तिभाव व्यक्त करती रहती है । यह इतनी गूढ़ और मायाविनी है कि अपना पाप बड़ी सफाई से छुपाये रखा और आप पर तथा लोगों पर महासती होने का झूठा रंग जमाती रही। उसका यह गुप्त पाप हमने देखा । इस स्थिति पर आप विचार करें । यह साधारण बात नहीं है । अपने विश्वविख्यात उत्तम कुल को कलंकित करने वाला अन्यन्त गम्भीर प्रसंग है । अपने वंश की पवित्रता को बनाये रखने के लिए आपको योग्य निर्णय
- - - साता उ
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