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सगर्भा सीता के प्रति सौतिया डाह एवं षड्यन्त्र
वर की खोज में था । अचानक नारदजी वहाँ पहुँच गए। राजा के पूछने पर नारदजी ने कहा--'लक्ष्मणजी इस कन्या के लिए योग्य वर है ।' उनका अभिप्राय सुनते ही वंश-वैर से अभिभूत राजकुमारों में क्रोध व्याप्त हो गया । उन्होंने नारदजी की अपभ्राजना करने के लिए अपने सेवकों को संकेत किया । नारदजी परिस्थिति समझ गए और तत्काल गमनबिहार कर अयोध्या पहुँचे । उन्होंने राजकुमारी मनोरमा का चित्र एक वस्त्रपट्ट पर आलेखित किया और लक्ष्मण को दिखाया । लक्ष्मण मुग्ध हो गए। उन्होंने परिचय पूछा । नारदजी ने परिचय देते हुए बीती हुई सारी बात बतला दी । राम-लक्ष्मण ने सेना ले कर प्रयाण किया और थोड़ी देर के युद्ध में रत्नरथ को जीत लिया । राम के साथ राजकुमारी श्रीदामा और लक्ष्मण के साथ मनोरमा के लग्न हुए। इसके बाद राम-लक्ष्मण, वैताढ्य गिरि की समस्त दक्षिण-श्रेणी को जीत कर अयोध्या में पहुँचे और सुखपूर्वक राज करने लगे ।
लक्ष्मणजी के १६००० रानियाँ हुई। इनमें पटरानियाँ आठ थीं । यथा-१ विशल्या २ रूपवती ३ वनमाला ४ कल्याणमाला ५ रत्नमाला ६ जितपद्मा ७ अभयवती और ८ मनोरमा । इनके ढाई सौ पुत्र हुए, जिनमें आठ महारानियों के ये आठ पुत्र मुख्य थे;१ विशल्या का पुत्र श्रीधर, २ रूपवती का पुत्र पृथिवीतिलक, ३ वनमाला का पुत्र अर्जुन, ४ कल्याणमाला का पुत्र मंगल, ५ रत्नमाला का पुत्र विमल, ६ जितपद्मा का पुत्र श्रीकेशी, ७ अभयवती का पुत्र सत्यकीर्ति और मनोरमा का पुत्र सुपार्श्वकीर्ति ।
रामभद्रजी के चार रानियाँ थीं--१ सीता २ प्रभावती ३ रतिनिभा और ४ श्रीदामा ।
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सगर्भा सीता के प्रति सौतिया डाह एवं षड्यन्त्र
सीता को रात्रि के समय अर्द्ध-निद्रित अवस्था में स्वप्न दर्शन हुआ । उसने दो अष्टापदों को आकाश में रहे देवविमान से उतर कर अपने मुंह में प्रवेश करते देखा और जाग्रत हुई । वह उत्साहपूर्वक उठी और पति के कक्ष पहुँची। उन्हें मधुर सम्बोधन से जाग्रत किया । रामभद्रजी ने महारानी सीता को आदरपूर्वक आसन पर बिठाया और प्रिय एवं मधुर सम्बोधन के साथ आने का प्रयोजन पूछा । सीता ने स्वप्न विवरण सुनाया । स्वप्न की उत्तमता जान कर रामभद्रजी प्रसन्न हुए और फल बतलाते हुए कहा - "देवी !
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