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________________ सात ऋषियों का वृत्तांत एक बार नाट्यशाला में नाटक देखते हुए अचल नरेश की दृष्टि उधर चली गई, जिधर कोई आरक्षक, एक मनुष्य को धक्का मार कर निकाल रहा था। नरेश का वह व्यक्ति परिचित लगा । उसे निकट बुला कर कहा - " कहो, महानुभाव ! मुझे पहिचाना ? मैं वही हूँ -- जिसका काँटा निकाल कर आपने उपकार किया था ।” उन्होंने उस अंक को अपने पास बिठाया और उसकी जन्मभूमि श्रावस्ति नगरी उसे दे कर अपने समान राजा बना लिया । फिर दोनों राजा मैत्री सम्बन्ध रखते हुए राज करने लगे । कालान्तर में उन्होंने समुद्राचार्य के पास प्रव्रज्या स्वीकार की और मृत्यु पा कर ब्रह्म देवलोक में देव हुए । अचल नरेश का जीव वहाँ से व्यव कर तुम्हारे कनिष्ट भ्राता के रूप में शत्रुघ्न हुए और अंक का जीव यह कृतांतवदन सेनापति है। मथुरा के साथ इनका पूर्वभवों का विशेष सम्बन्ध रहा, इमीसे इनकी आसक्ति उस पर हुई । इस प्रकार शत्रुघ्न का पूर्वभव बताने के बाद मुनिराज विहार कर गए और रामभद्रजी आदि स्वस्थान आये । १६६ सात ऋषियों का वृत्तांत प्रभापुर के राजा श्रीनन्द की धारणी रानी के अनुक्रम से सात पुत्र हुए उनके नाम -- १ सुरनन्द २ श्रीनन्द ३ श्रीतिलक ४ सर्वसुन्दर ५ जयंत ६ चामर और ७ जयमित्र । इसके बाद आठवाँ पुत्र हुआ। वह एक मास का ही था कि राजा उसका राज्याभिषेक कर दिया और स्वयं अपने सात पुत्रों के साथ प्रव्रजित हो गए । श्रीनन्द नरेश तो तप-संयम का पालन कर के मोक्ष पधार गए और सातों भ्राता मुनि, तप-संयम की आराधना करते रहे । वे जंघाचारण-लब्धि सम्पन्न थे । वे साता मुनिवर विहार करते हुए मथुरा आए और वर्षा ऋतु होने के कारण एक पर्वत की गुफा में चातुर्मास रहे । वे बेले-तेले आदि तपस्या करते रहते थे और आकाश विहार कर पारणा करते थे । पारणे के बाद फिर गुफा में आ कर रहते थे । उन मुनिवरों के प्रभाव से चरेन्द्र की उत्पन्न की हुई व्याधि दूर हो कर शाँति हो गई । सातों चारण मुनिवर गुफा में रह कर निरन्तर तप करते रहते और पारणे के दिन गगन-विहार कर बस्ती में जाते, पारणा करते और पुनः पर्वत- गुफा में आ कर तप साधना में लग जाते । ऐसे तप-संयम के धनी एवं आत्मबल सम्पन्न महात्माओं के प्रभाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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