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________________ कुंभकर्ण का मूच्छित होना + इन्द्रजीत और मेघवाहन का अतुल पराक्रम १७१ गिरते ही महोदर नाम का राक्षस आगे आया । उसके साथ अन्य राक्षस भी झपटे । हनुमान ने सभी पर प्रहार कर के घायल कर दिये । उसी समय मारुती नाम का राक्षस वीर भी हनुमान पर प्रहार करता हुआ आगे बढ़ा। किंतु उन सभी आक्रामकों को, महापराक्रमी हनुमान ने धराशायी कर दिया । कुंभकर्ण का मूर्च्छित होना राक्षसी - सेना की दुर्दशा देख कर कुंभकर्ण स्वयं युद्ध करने आया । उस प्रचण्ड योद्धा ने वेगपूर्वक चलते हुए किसी को मुक्के से, किसी को ठोकर से किसी को धक्के से और किसी चपेटा मार कर गिराते हुए, पाँवों से रोंदते और बहुतों को मुद्गर त्रिशूल आदि से मारते हुए, कई वानरों के प्राण ले लिये। कुभकर्ण के आतंक से वानर सेना घबड़ाने लगी । कुंभकर्ण के आतंक को रोकने के लिए वानरपति सुग्रीव उपस्थित हुआ । साथ ही भामण्डल, दधिमुख, महेन्द्र, कुमुद, अंगद आदि कई वीर आये और एक साथ अस्त्र-वर्षा करके कुंभकर्ण की गति रोक दी । कुंभकर्ण ने उस समय प्रस्वापन नामक अस्त्र फेंका । उस अस्त्र के प्रभाव से वानर सेना निद्राधीन हो गई। सुग्रीव ने अपनी सेना को निद्रामग्न देख कर प्रबोधिनी महाविद्या का स्मरण किया। उसके प्रभाव भी भीषण प्रहार कर कुंभकर्ण के सारथी, घोड़े और रथ को नष्ट कर दिया । अब कुंभकर्ण हाथ में मुद्गर ले कर सुग्रीव पर दौड़ा ! उसकी दौड़ की झपट में आ कर कई मनुष्य गिर गए और पैरों से कुचल कर मर गए। उसने जाते ही सुग्रीव के रथ को चूर्ण कर डाला । सुग्रीव उसी समय आकाश में उड़ा और एक भारी शिला उठा कर कुंभकर्ण पर फेंकी। कुंभकर्ण ने उस शिला पर मुद्गर मार कर टुकड़े-टुकड़े कर दिये । इसके बाद सुग्रीव ने विद्युत् दंडास्त्र का प्रहार कर कुंभकर्ण को भूमि पर गिरा दिया । कुंभकर्ण मूच्छित हो गया । से सुप्त सेना पुनः जाग्रत होकर युद्धरत हो गई। सुग्रीव ने इन्द्रजीत और मेघवाहन का अतुल पराक्रम कुंभकर्ण के मूच्छित होते ही रावण का क्रोध भड़का । वह स्वयं आगे बढ़ने लगा, तब उसके पुत्र इन्द्रजीत ने आगे बढ़ कर निवेदन किया “पिताजी ! इन मामूली वानरों के लिए आपको कष्ट करने की आवश्यकता नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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