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युद्धारंभ + + नल-नील आदि का पराक्रम
के निकट बीस योजन लम्बे-चौड़ मंदान में सेना का जमाव हुआ । सेना शस्त्रास्त्र से सज्ज हो कर युद्ध के लिए तैयार हो गई । इस विशाल सेना के कोलाहल से गंभीर नाद उत्पन्न हो कर महासागर के गर्जन जैसा दिगंतव्यापी हो गया । इस महाघोष से लंकावासियों के मस्तिष्क और हृदय आतंकित हो गये । उनका पारस्परिक वार्त्तालाप भी सुनाई देना कठिन हो गया ।
रावण की सेना भी तैयार हो पहुँच गए। कितने ही योद्धा हाथी पर
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कर आ डटी । उसके प्रहस्त आदि सेनापति भी कई घोड़े पर कई गधे पर, कई रथ पर, कोई भैंसे कोई मनुष्य पर सवार हो कर आये, तो कोई-कोई भड़वीर सिंहपर चढ़ कर आ पहुँचे । सभी ने रावण को चारों ओर से घेर लिया । रावण सब के मध्य में था । रावण विविध प्रकार के आयुधों से सज्ज हो कर रथ में बैठा । यम के समान मयंकर दिखाई देने वाला भानुकर्ण. त्रिशूल लिये हुए रावण के निकट पार्श्व-रक्षक के रूप में खड़ा रहा । राजकुमार इन्द्रजीत और मेघवाहन, रावण की दोनों भुजाओं के पास रहे । इनके सिवाय बहुत-से राजकुमार, सामन्त और शुक, सारण, मारिच, मय और सुन्द आदि वीर भी आ डटे । इस प्रकार सहस्रों अक्षोहिणी सेना से युक्त रावण ने शत्रु सैन्य के सामने, पचास योजन भूमि पर पड़ाव लगाया ।
सैनिक अपने विपक्षी सैनिक को सम्बोध कर, अपनी और अपने नायक की प्रशंसा और उसके नायक तथा उनकी निन्दा करने लगे । कोई अपने संमुख खड़े शत्रु को कायर, नपुंसक, रांक आदि कहता, गालियाँ देता और अपमान करता । इस प्रकार आरोपप्रत्यारोप से द्वेष, ईर्षा एवं क्रोध में वृद्धि होने लगी । सैनिक अपने-अपने अस्त्र शस्त्र दिखा कर एक-दूसरे को धराशायी करने के वाक्बाण छोड़ने लगे । युद्ध प्रारंभ हो गया । शस्त्रप्रहार एवं अस्त्र प्रक्षेप की झड़ियाँ लग गई और साथ ही हस्त, पाद तथा मस्तकादि कटकट कर भूमि पर गिरने लगे । शरीरों में से रक्त की पिचकारियाँ छूट कर पृथ्वी को रंगने लगी । रुण्ड-मुण्डों का ढेर लगने लगा। मनुष्य ही क्या, घोड़ों और हाथियों के अंग-प्रत्यंग भी कट-कट कर गिरने लगे । बहुत देर तक युद्ध चलता रहा । वानर तथा राक्षस-सेना का युद्ध विकराल बन गया । वानरों के भीषण प्रहार से राक्षसों का विनाश देख कर, हस्त और प्रहस्त नाम के प्रचण्ड योद्धा, अग्रभाग पर पहुँचे । उनका सामना करने के लिए रामसेना के वीर नल और नील आगे आये । नल ने हस्त का सामना किया और नील ने प्रहस्त का । दोनों वीर रथारूढ़ होकर एक-दूसरे पर बाण-वर्षा करने लगे । कभी नल के गले में विजयमाला जाती हुई दिखाई
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