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तीर्थकर चरित्र
हनुमान ने लंका सुन्दरी से वहीं गन्धर्व-विवाह कर लिया। उस समय सूर्य अस्त होने वाला था ४ । हनुमान रात भर लंका सुन्दरी के साथ क्रीड़ा करते रहे।
हनमान का विभीषण को सन्देश
प्रातःकाल लंकासुन्दरी से बिदा हो कर हनुमान ने नगर में प्रवेश किया और विभीषण के समक्ष उपस्थित हुआ । विभीषण ने हनुमान का सत्कार किया और आगमन का कारण पूछा । हनुमान ने कहा;--
"आप दशाननजी के बन्धु हैं और न्यायपरायण महामन्त्री हैं। रावण, रामभद्रजी की पत्नी सीताजी का अपहरण कर के ले आये हैं। मैं श्रीरामभद्रजी का सन्देश ले कर आया हूँ कि आप रावण से सीताजी को मुक्त करवा दें। मैं जानता हूँ कि रावण बलवान् हैं, किंतु उसका यह कार्य अत्यंत अधम है। इससे उनका परलोक ही नहीं, यह लोक भी बिगड़ेगा। आप इस पाप का परिमार्जन करवाइये । अन्यथा इसका दुःखद परिणाम उन्हें भुगतना पड़ेगा।"
"हनुमान ! तुम्हारा कहना सत्य है । मैने पहले भी बन्धुवर से सीता को मुक्त करने का निवेदन किया था। किन्तु उन्होंने मेरी बात नहीं मानी । में पुनः आग्रहपूर्वक प्रार्थना करूंगा।"
सीता को सन्देश
हनुमान विभीषण के पास से निकल कर देवरमण उद्यान में आया और छुप कर सीता को देखने लगा । सीता अशोक वृक्ष के नीचे उदास और आँसू बहाती हुई दिखाई दी । वह अत्यंत दुर्बल, म्लान एवं अशक्त होगई थी। उसके हृदय से सतत निःश्वास निकल रहे थे । सीता को देखते ही हनुमान ने सोचा-" सीता महासती है । उसके दर्शन से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है । वह योगिनी की भांति राम का ही ध्यान कर रही है । रामभद्रजी को इस सीता का विरह संतप्त कर रहा है--यह उचित ही है । ऐसी
x आचार्य श्री ने इस स्थल पर बंध्या, रात्रि ओर उषाकाल का बड़ा ही मोहक तथा अलंकारों से भरपूर विस्तृत वर्णन किया है। इस सारे वर्णन में सुन्दरी गुबती के बंगोपांगों तथा मदन भावयुक्त उपमा प्रचुरता से व्यक्त हुई।
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