SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० तीर्थकर चरित्र सर्वस्व त्याग कर तेरी सेवा करने को तत्पर हुई है। में स्वयं भी मेरा साम्राज्य और जीवन तेरे चरणों पर न्यौछावर करने को तत्पर हूँ। मैं शपथ-पूर्वक कहता हूँ कि जीवनपर्यन्त मैं तेरा सेवक रहूँगा । अब तू अपना हठ छोड़ कर चल हमारे साथ ।" “दुष्ट, नराधम ! तेरे पतन का समय निकट आ रहा है । यमराज तुझ पर अपना कालहस्त शीघ्र ही फैलावेगा। तेरे मन में घसा हा पाप, तझे नष्ट-भ्रष्ट कर, नरक में डाल देगा । तू उस अधःपतन और मृत्यु का पथिक हो गया है, जिसे कोई भी सत्पुरुष नहीं चाहता । अप्राक्ति की प्रार्थना करने वाले चाण्डाल ! कुत्ते ! भाग जा यहां से ।" . “तू निश्चय जान कि पुरुषोत्तम राम, अपने अनज वीर लक्ष्मण के साथ आ कर तुझे यमधाम पहुंचा देंगे । उस महावाहु युगल के सामने तू मच्छर जसा है । यदि सुमति ने तेरा साथ नहीं दिया, तो तेरा विनाश अवश्यंभावी है।" रावण कामान्ध था। उसकी वासना प्रबल थी और दुर्भाग्य का उदय होने जा रहा था। उसे सन्मति आवे कहाँ से ? उसने सोचा-“यह सीधी तरह नहीं मानेगी । कई प्राणी ऐसे होते हैं, जो भय उत्पन्न होने पर ही प्रीति करने लगते हैं, उन पर समझाने का प्रभाव नहीं पड़ता। मझे भी अब कठोर उपाय काम में लाना चाहिए"--इस प्रकार सोच कर अपनी बैंक्रिय-शक्ति से वह उपद्रव करने लगा । संध्या हो चुकी थी । अन्धकार सर्वत्र व्याप्त हो चुका था। अन्धकार वैसे भी भयानक होता है, फिर शत्रुतापूर्ण वातावरण तथा एकाकीपन हो, तो भयंकरता विशेष बढ़ जाती है। ऐसे समय रावण-विकुक्ति उल्लू का बोलना, मीदड़ों का रोना, सिंह की गर्जना, सर्पो की फुत्कार, बिल्लों का क्रोधपूर्वक लड़ना, भूत-पिशाच एवं बेताल के भयंकर अट्टहास, इत्यादि उपद्रव, पहले तो दूर भासित्त होने लगे, फिर निकट आते हुए उसे घेर कर भय का उग्र प्रदर्शन करने लगे। सीता तो पहले से ही आत्म-विश्वासी थी। वह अपने झोलधर्म पर प्राण न्यौछावर करने के लिए तत्पर हो चुकी थी। इसीसे तो रावण जैसे महापराक्रमी का प्रभाव भी उसे विचलित नहीं कर सका। जिसके मन में जीवन से भी धर्म का महत्व अधिक होता है और धर्म के लिए प्राण देने को तत्पर हो जाता है, उसे भय किस बात का ?सीता निश्चल रह कर परमेष्ठि का स्मरण करने लगी। रावण के उत्पन्न किये हुए भय विफल हुए और उसे निराश लौटना पड़ा। रावण से विभीषण की प्रार्थना प्रतःकाला होने पर विभीषण ने सुना--" रावण किसी सुन्दरी का अपहरण करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy