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तीर्थंकर चरित्र
और भोजन कराया । भोजनादि से निवृत्त हो कर और परिजनादि को हटा कर कल्याणमल्ल ने स्त्रीवेश धारण किया और अपने प्रधानमन्त्री के साथ अतिथियों के संमुख आ कर नतमस्तक हो प्रणाम किया । रामभद्र ने कहा ;--
"भद्रे ! अपने स्वाभाविक स्त्रीत्व को गुप्त रख कर पुरुषवेश में रहने का क्या प्रयोजन है ?"
__ उत्तर मिला--"यहाँ के शासक (मेरे पिता) वाल्यखिल्य नरेश थे। उनकी प्रिय रानी पृथ्वीदेवो की कुक्षि में में आई। थोड़े दिन बाद ही राज्य पर म्लेच्छों ने आक्रमण कर दिया और छलबल से पिताजी को वाँध कर ले गए । उसके बाद मेरा जन्म हुआ। बुद्धिमान प्रधानमन्त्री ने जाहिर किया कि 'रानी के पुत्र का जन्म हुआ है' और उत्तराधिकारी पुत्र के रूप में मेरा राज्याभिषेक हो गया। मैं पुरुषवेश और पुरुष नाम से दूसरों के सामने आने लगी । मेरी परिचर्या माता और अत्यंत विश्वस्त एक सेविका द्वारा होने लगी, जिससे किसी को मेरे पुत्री होने का पता नहीं चले। मैं 'कल्याणमाला' के बदले 'कल्याणमल्ल' कहलाने लगी। पुत्र-जन्म के समाचार पा कर पड़ोसी राज्य के नरेश सिंहोदर ने मेरे पिताजी के लौट आने तक मझे राज्याधिपति की मान्यता दी । अब तक में पुरुष रूप में ही प्रसिद्ध हूँ । मातेश्वरी, प्रधानमन्त्री और एक सेविका के सिवाय मेरे स्त्रीत्व का किसी को पता नहीं है । पिताश्री को छुड़ाने के लिए मैने म्लेच्छों को बहुत-सा धन दिया । वे दुष्ट धन भी ले गये और उन्हें मुक्त भी नहीं किया । इसलिए आप से प्रार्थना है कि आप उन दुष्टों से मेरे पिताश्री को मुक्त कराने की कृपा करें। आप महाबली हैं, पर दु:खभंजक हैं। पहले भी आपने सिहोदर के भय से वज्रकर्ण की रक्षा की । अब मुझ पर यह उपकार कर के अनुग्रहित करें।"
... रामभद्र ने कहा--"हम तुम्हारे पिता को मुक्त करा कर लावें, तबतक तुम पुरुषवेश में ही रह कर राज्य का संचालन करती रहो।" कल्याणमाला ने पुनः पुरुषवेश धारण कर लिया। उसके प्रधानमन्त्री ने कहा--"राजकुमारी के पति लक्ष्मणजी होंगे।" ... --" अभी हम देशाटन कर रहे हैं । लौटते समय राजकुमारी के लग्न, लक्ष्म के साथ हो जावेंगे--श्री रामभद्रजी ने कहा।"
म्लेच्छ सरदार से वालिखिल्य को छुड़ाया तीन दिन वहाँ रुक कर श्री राम-लक्ष्मण और सीता ने रात्रि के समय--सभी को
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