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________________ भामण्डल का हरण कुलमण्डित अपनी प्रिया के साथ पल्ली में रहता और अयोध्या नरेश श्री दशरथजी की सीमा में लूट मचा कर धन प्राप्त करने लगा। किंतु उसकी वह लूट अधिक दिन नहीं चल सकी । राज्य के सामन्त बालचन्द्र ने कुलमण्डित को अपने जाल में फाँस कर बन्दी बना लिया और कारागृह में डाल दिया । कुछ काल के बाद दशरथ नरेश ने उसे उच्चकुल का जान कर, योग्य शिक्षा दे कर छोड़ दिया। कारागृह से छूटने के व द वह अपने पिता का राज्य प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगा। किन्तु इस बीच ही उसे मुनिचन्द्र स्वामी के दर्शन हुए। वह धर्मोपदेश सुन कर श्रावक हो गया और अपूरित राजेच्छा में ही मर कर मिथिलेश श्री जनकराजा की विदेहा रानी की कुक्षि से पुत्रपने उत्पन्न हुआ और वह सरसा मर कर एक पुरोहित की 'वेगवती' नाम की पुत्री हुई। इस भव में संयम पाल कर वह ब्रह्मदेवलोक में गई और वहां से च्यव कर विदेहारानी की कुक्षि में, उस कुलमण्डित के जीव के साथ ही गर्भ में आई । गर्भकाल पूर्ण होने पर विदेहारानी ने एक पुत्र और एक पुत्री को जन्म दिया । जिस समय इनका जन्म हुआ, लगभग उसी समय वे पिंगल मुनि, मृत्यु पाकर प्रथम स्वर्ग में देव हुए और अपनी प्रिया का हरण करने वाले शत्रु को देखने लगे । पूर्वभव का संचित किया हुआ वैर जाग्रत हुआ । उस देव ने देखा कि - ' मेरा: शत्रु मिश्रिता की महारानी का पुत्र हुआ है । उसका क्रोध उदय में आया । उसने तत्काल के उत्पन्न बालक का अपहरण किया और विचार किया कि 'इसे किसी शिला पर पछाड़ कर मार दूं,' किंतु इस विचार के साथ ही उसकी धर्म-चेतना जगी । उसने सोचा- 'बाल-हत्या बहुत भयंकर पाप है । मुझे इस पाप से बचना चाहिए ।' उसने बालक को उत्तम आभूषणों से विभूषित करके आकाश से नीचे उतारा और वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में आये हुए रथनूपुर नगर के नंदन उद्यान में रख दिया । आकाश से उतारते समय बालक की कुण्डल की कान्ति - किरण नगर में दिखाई दी । चन्द्रगति नरेश ने उस कान्ति को उद्यान में उतरते देखा तो वे शीघ्र ही उद्यान में आये । उन्हें आभूषणों से सुसज्जित सुन्दर बालक देख कर बड़ी प्रसन्नता हुई । वे स्वयं पुत्र- विहीन थे । तत्काल बालक को उठा कर भवन में ले आये और रानी को दे कर, लोगों में प्रसिद्ध कर दिया कि 'गूढगर्भा महारानी के पुत्र का जन्म हुआ है ।' जन्मोत्सव होने लगा । पुत्र के पृथ्वी पर आते समय प्रभा दिखाई दी, इसलिए पुत्र का नाम " भामण्डल" दिया। बालक सुखपूर्वक बढ़ने लगा । मिथिला की महारानी विदेहा के साथ जन्मे हुए दोनों बालक उसके पास ही सोये थे, किंतु पलक मारते ही पुत्र लोप हुआ जान कर रानी घबड़ाई । वह रुदन करने लगी । पुत्र के अपहरण का समाचार सुन कर जनक नरेश भी स्तंभित रह गए। चारों ओर खोज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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