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________________ राम-लक्ष्मण का जन्म शीघ्रवेधी बाण की मार के अनुरूप होता और बाणवर्षा कर के रथ दूसरे शत्रु की ओर अभिमुख होता । कैकेयी के रथ चालन से दशरथजी का प्रहार अचूक रहता और उनका रक्षण भी हो जाता । थोड़ी देर के युद्ध में ही कई राजाओं के रथ टूट गये, कई घायल हो गये और शेष भय के मारे पलायन कर गये । दशरथजी को विजय हुई। शत्रुओं की सेना और शस्त्रास्त्र दशरथजी के हाथ लगे। कैकेयी के साथ दशरथजी के लग्न हो गये। उन्होंने प्रसन्न हो कर कैकेयी से कहा--देवी ! तुम्हारे कुशलतापूर्वक किये हुए सारथ्य से हा मैं विजयी हुआ । मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम जो इच्छा हो, मांगो। मैं तुम्हें दूंगा ।।" चतुर कैकेयी ने कहा--"स्वामी ! मैंने अपने कर्तव्य का पालन किया है, फिर भी आप प्रसन्न हैं, तो अभी अपने वचन को अपने पास ही--मेरी धरोहर के रूप में रखिये । जब मुझे आवश्यकता होगी, मांग लूंगी।" शत्रुओं की सेना और शस्त्रास्त्र ले कर, कैकेयी रानी सहित दशरथजी राजगृह नगर पहुँचे और मगध नरेश को जीत कर उस राज्य पर अधिकार किया । वे वहीं रहने लगे । जनक नरेश मिथिला चले गये । दशरथजी ने अयोध्या से अपनी तीनों रानियों को राजगृह बुला लिया और सब के साथ सुखभोग करते हुए काल व्यतीत करने लगे। राम-लक्ष्मण का जन्म अन्यदा रानी कौशल्या को रात्रि के अंतिम प्रहर में चार महास्वप्न आये। यथाहाथी, सिंह, चन्द्र और सूर्य । एक महद्धिक देव, ब्रह्म देवलोक से च्यव कर, रानी के गर्भ में आया । स्वप्न पाठकों ने स्वप्न का फल बतलाया--"कोई महा पराक्रमी जीव, महारानी के गर्भ में आया है । वह महाबली और 'बलदेव' पद का धारक होगा।" "गर्भकाल पूर्ण होने पर, पुत्र-रत्न का जन्म हुआ। दशरय नरेश ने हर्षातिरेक से याचकों को बहुत दान दिया । राज्यभर में उत्सव मनाया गया। पुत्र का नाम--'पद्म' रखा गया, लोगों में वे 'राम' के उपनाम से प्रसिद्ध हुए। __ कालान्तर में रानी सुमित्रा ने भी एक रात्रि में सात स्वप्न देखे । यथा--हाथी, सिंह, सूर्य, चन्द्र अग्नि, लक्ष्मी और समुद्र उनके गर्भ में एक महद्धिक देव आ कर उत्पन्न हुआ । गर्भकाल पूर्ण होने पर रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। अत्यधिक हर्ष और उत्साह के साथ जन्मोत्सव मनाया गया। पुत्र का नाम 'नारायण' दिया गया, किंतु प्रसिद्धि में 'लक्ष्मण' नाम रहा। अनुक्रम से बढ़ते हुए वे युवावस्था को प्राप्त हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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