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तीर्थंकर चरित्र
करेगा। आप सभी को उस शासक की आज्ञा में रहना पड़ेगा।"
उपस्थित समूह ने कहा--"स्वामिन् ! आप ही हमारे स्वामी हैं । हम और किस स्वामी के पास जावें ? आप से बढ़ कर अथवा आपके समान दूसरा कोई भी व्यक्ति नहीं है । इसलिए आप ही हसारे शासक बन कर हमारी प्रतिपालना करें।"
श्री ऋषभदेव ने कहा--"आप अपने कुलकर के पास जा कर प्रार्थना करें। वे आपके लिए शासक की व्यवस्था करेंगे।" सभी युगलिक श्री नाभि कुलकर के पास गये और प्रार्थना की। नाभि कुलकर ने कहा--"ऋषभ आपका राजा होगा ।" सभी युगलिक प्रभु के पास आये और नाभि कुलकर की आज्ञा सुनाई।
उस समय सौधर्म स्वर्गाधिपति शकेन्द्र का आसन चलित हुआ । उसने अवधिज्ञान से प्रभु के राज्याभिषेक का समय जान कर राज्याभिषेक करने के लिए प्रभु के पास आया। उसने स्वर्ण की वेदिका और उस पर एक सिंहासन बनाया और तीर्थ-जल से अभिसिञ्चित कर राज्याभिषेक किया। दिव्य वस्त्र परिधान करायें। रत्नों के मुकुट आदि अलंकार धारण कराये । इसके बाद इन्द्र, उन सभी के रहने के लिए विनीता' नाम की नगरी निर्माण करने का 'कुबेर' को आदेश दे कर स्वर्ग में चला गया ।
___ कुबेर ने बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी ऐसी विनीता नगरी का निर्माण किया और उसका दूसरा नाम 'अयोध्या' भी रखा । भव्य, सुन्दर और सभी प्रकार की सुविधाओं से परिपूर्ण भवन बनाये । बाजार, हाट, उद्यान, बाग-बगीचे आदि यथास्थान बनाये। बालकों के खेलने के लिए रमणीय स्थान । आवास बड़े ही सुन्दर, खिड़कियें और कमरे आदि से परिपूर्ण । सभी प्रकार की सजाई के सामान और गृहकार्य के लिए उपयोगी ऐसे पलंग, आसन, शयन और अन्य सभी प्रकार के उपकरणों की व्यवस्था कर दी। नगरी को धन-धान्य और वस्त्रादि से परिपूर्ण की। सुरक्षार्थ किला बनाया। लाखों कूए, बावड़ी, कुण्ड, गृहवापिका आदि निर्माण किये।
जन्म से बीस लाख पूर्व बीतने पर श्री ऋषभदेवजी इस अवसर्पिणीकाल के प्रथम नरेश हए । वे अपनी प्रजा का पुत्र के समान पालन करते थे। काल-प्रभाव से मनुष्यों के मनोगत भावों में भी क्लिष्टता आ गई थी। इससे संघर्ष भी होने लगे थे। अतएव सज्जनों का पालन करने और दुष्टों का दमन करने के लिए योग्य मंत्रियों को नियुक्त किया। चोर आदि से प्रजा को बचाने के लिए 'आरक्षक' नियुक्त किया । यदल गयदल रथदल और पायदल, इस प्रकार चार प्रकार की सेना बनाई और बलवान सेनापति
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