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________________ भरत- बाहुबली और ब्राह्मी-सुन्दरी का जन्म श्री ऋषभकुमार अपनी दोनों पत्नियों के साथ, वेदमोहनीय व र्म के अनुसार अनासक्त भाव से भोग भोगने लगे। कुछ कम छः लाख पूर्व तक भोग भोगने के बाद 'बाहु' और 'पीठ' के जीव, सर्वार्थसिद्ध महाविमान से च्यव कर श्री सुमंगलाजी की कुक्षि में गर्भ रूप से उत्पन्न हुए और 'सुबाहु' तथा 'महापीठ' के जीव श्री सुनन्दाजी के गर्भ में उत्पन्न हुए । सुमंगलाजी ने श्रीमरुदेवा के समान चौदह महास्वप्न देखे और श्री ऋषभकुमार को स्वप्न की बात कही । श्री ऋषभकुमार ने कहा - "प्रिये ! तुम्हारे गर्भ में रहा हुआ बालक, प्रथम चक्रवर्ती नरेश होगा ।" गर्भ-काल पूर्ण होने पर सुमंगलाजी की कुक्षि से युगल का जन्म हुआ । पुत्र का नाम 'भरत' और पुत्री का नाम 'ब्राह्मी' दिया गया । श्री सुनन्दाजी के पुत्र का नाम 'बाहुबली' और पुत्री का नाम 'सुन्दरी' रखा। इसके बाद श्री सुमंगलाजी ने अनुक्रम से ४९ युगल पुत्रों (९८ पुत्रों ) को जन्म दिया। जिस प्रकार अनेक शाखाओं से वृक्ष सुशोभित होता है, उसी प्रकार पुत्री और पुत्रों से श्री ऋषभदेवजी सुशोभित थे । कर्म-भूमि का प्रारम्भ - राज्य स्थापना जिस प्रकार प्रातःकाल में दीपक का प्रकाश कम हो जाता है, उसी प्रकार अकर्म-भूमि के बीत जाने और कर्म भूमि के उदय से कल्पवृक्षों का प्रभाव क्षीण होने लगा। वे थोड़े फल देने लगे । उधर शांत प्रकृति वाले युगलिकों में कषाय की भावना जग कर वृद्धि पाने लगी । वे 'हकार,' 'मकार' और 'धिक्कार' की नीति की अवहेलना करने लगे । इस परिस्थिति को देख कर कुछ युगलिक एकत्रित हो कर श्री आदिनाथ के पास आये और व्यवस्था जमाने का निवेदन किया। श्री आदिनाथजी ने अवधिज्ञान का उपयोग लगा कर देख लिया कि "अब सुव्यवस्था और शान्ति के लिए सत्ताधारी शासक की आवश्यकता है। इसके बिना म तो व्यवस्था रहेगी, न शान्ति ही । अव्यवस्था ही अशान्ति की जड़ है। इसका उपाय मुझे ही करना पड़ेगा । कर्म भूमि के आदिकाल में यह व्यवस्था इसी प्रकार हुई और होती रहेगी। मेरा उदय भी उसी के अनुसार है"- ' -- इस प्रकार सोच कर कहा " आपके सामने जो समस्या है, वह आगे चल कर बढ़ेगी । इसके लिए आपको एक शासक की आवश्यकता है । आप अपने लिए एक शासक नियुक्त कर लें। वह सम्पूर्ण अधिकार और सैन्य शक्ति के साथ आप पर शासन करेगा और आपकी कठिनाइयों को दूर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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