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________________ भ० ऋषभदेवजी -- इन्द्रों का आगमन और जन्मोत्सव महापुरुष । महोरगों के इन्द्र - अतिकाय और महाकाय । गन्धर्वों के इन्द्र -- गीतरति और गीतयश | व्यन्तरों की दूसरी आठ निकाय के १६ इन्द्र हैं । जैसे - अप्रज्ञप्ति के इन्द्र -- सन्निहित और समानक । पंचप्रज्ञप्ति के इन्द्र -- धाता और विधाता । ऋषिवादितों के इन्द्र-ऋषि और ऋषिपालक । भूतवादितों के इन्द्र--- ईश्वर और महेश्वर । ऋदितों के इन्द्र-सुवत्सक और विशालक । महाऋद्रितों के इन्द्र --हास और हासरति । कुष्मांडों के इन्द्र-श्वेत और महाश्वेत । पालकों के इन्द्र -- पावक और पावकपति । ४३ ज्योतिषियों के असंख्याता चन्द्र और सूर्य । ये 'चन्द्र' और 'सूर्य' - इन दो नाम के ही हैं । इसलिये गिनती में दो ही लिये हैं । DE वैमानिकों के १०, भवनपतियों के २०, व्यन्तरों के ३२ और ज्योतिषियों के २ । इस प्रकार ६४ इन्द्र, भगवान् का जन्मोत्सव मनाने के लिए मेरु पर्वत पर एकत्रित हुए । जन्मोत्सव का प्रारम्भ करते हुए वैमानिकों के अच्युतेन्द्र ने अपने आज्ञाकारी देवों को जन्मोत्सव के योग्य उपकरण एकत्रित करने की आज्ञा दी । आज्ञाकारी देवों ने ईशानन की ओर जा कर वैक्रिय-समुद्घात किया और उत्तम पुद्गलों का आकर्षण कर के, सोना, चाँदी, रत्न, सोना और चाँदी के मिले हुए, सोना और रत्नों के मिले हुए, सोना, चाँदी और रत्न के मिले हुए, चाँदी और रत्न के मिले हुए और मृतिका के ऐसे आठ प्रकार के उत्तम, एक हजार आठ सुन्दर कलश बनाये। इसी प्रकार झारी, दर्पण, करंडिये, ढकने, थाल, चंगेरियें आदि बनाये और क्षीर-समुद्र आदि विशिष्ठ स्थानों के जल, श्रेष्ठ कमलादि पुष्प, गोशीर्ष आदि सुगन्धित चन्दन आदि एकत्रित किये । Jain Education International इसके बाद अच्युतेन्द्र ने अपने सामानिक, आत्मरक्षक, लोकपाल आदि देवों के साथ उत्तरासंग कर के भगवान् को स्नान कराया, चन्दन से अंग पर विलेपन किया, पुष्पमालाएँ आदि से सुशोभित किया, सुगन्धित धूप से वायुमण्डल सुगन्धित किया। परिवार के अन्य देव तथा आज्ञाकारी देव, उस समय विभिन्न प्रकार के वादिन्त्र बजाने लगे। कई नृत्य करने लगे, कई हर्षातिरेक से कूदने, फांदने और विविध प्रकार के कौतुक करने लगे । इस प्रकार मेरु पर्वत का पांडुकवन, द्रव्य जिनेश्वर के जन्मोत्सव से आल्हादित होने लगा * 1 * जिस प्रकार साधारण मनुष्यों के जन्मोत्सव होते है, उससे अधिक आडम्बर युक्त जन्मोत्सव बड़े-बड़े सेठों, सामन्तों, ठाकुरों और राजा-महाराजाओं के यहाँ होते हैं और उन सब से श्रेष्ठ प्रकार से चक्रवर्ती सम्राटों के यहाँ जन्मोत्सव होता हैं । किन्तु भावी जिनेश्वर भगवान् के सर्वोत्कृष्ट पुण्य - प्रकृति के उदय से, उनका जन्मोत्सव, संसार ( समस्त लोक ) की उत्तम हस्ति ( मर्वश्रेष्ठ देवेन्द्र ) द्वारा, लोक की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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