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________________ तीर्थकर चरित्र बिब बना कर मातेश्वरी के पास सुलाया। इसके बाद इन्द्र ने अपने पाँच रूप बनाये । फिर भगवान् को प्रणाम कर के--" हे भगवन् ! आपकी आज्ञा हो"--इस प्रकार कह कर अपने एक रूप से दोनों हाथों में भगवान् को ग्रहण किया। दूसरे रूप से पीछे खड़े रह कर हाथ में छत्र धारण किया। दो रूप चवर धारण कर दोनों ओर रहे और पांचवें रूप से वज्र धारण करके आकाश मार्ग से आगे चले । इस प्रकार प्रभु को ले कर मेरु पर्वत के पांडुक वन में पहुँचे । फिर 'अतिपांडुकबला' नामक शिला पर सिंहासन रखा और इन्द्र अपनी गोदी में प्रभु को ले कर पूर्व दिशा की ओर मुँह कर के बैठे। जिस समय सौधर्मेन्द्र, भगवान को ले कर मेरु पर्वत पर आये, उस समय 'महाघोषा' घंटा के नाद से प्रबोधित हो कर ईशानेन्द्र, पृष्पक विमान में बैठ कर अपने परिकर सहित दक्षिण दिशा के मार्ग से ईशानकल्प से नीचे उतरे और तिरछे चल कर नन्दीश्वर द्वीप पर आये और रतिकर पर्वत पर अपने विमान को संकुचित कर, मेरु पर्वत पर भगवान् के समीप भक्तिपूर्वक उपस्थित हुए। सनत्कुमार इन्द्र भी अपने 'सुमन' विमान द्वारा उपस्थित हए । महेन्द्र, श्रीवत्स विमान से, ब्रह्मेन्द्र, नन्द्यावर्त विमान से, लांतकेन्द्र, कामग विमान से, शुक्रेन्द्र, प्रीतिगम विमान से, सहस्रार इन्द्र, मनोरम विमान से, आनतप्राणत के इन्द्र, विमल विमान से और आरणाच्युत देवलोक के इन्द्र, सर्वतोभद्र विमान में बैठ कर भगवान् का जन्मोत्सव मनाने के लिए भक्तिपूर्वक मेरु पर्वत पर आये । रत्नप्रभा पृथ्वी की पोलार में रहने वाले भवनपति और व्यन्तर के इन्द्रों के आसन कम्पायमान हुए। उस समय चमरचंचा नगरी की सुधर्मा सभा में असुरराज चमरेन्द्र ने अवधिज्ञान के उपयोग से जब भ. आदिनाथ का जन्म होना जाना, तो वह भी अपने परिवार के साथ आया। 'बलिचंचा' नगरी से बलिन्द्र, नागकुमार जाति के धरणेन्द्र और भूतानेन्द्र, विद्युत्कुमारों के इन्द्र-हरि और हरिस्सह, ८.र्णकुमारों के इन्द्र --वेणुदेव और वेणुदारी, अग्निकुमारों के इन्द्र--अग्निशिख और अग्निमाणव, वायुकुमारों के इन्द्र -- वेलंब और प्रभंजन, स्तनितकुमारों के इन्द्र--सुघोष और महाघोष, उदधिकुमारों के इन्द्र-जलकान्त और जलप्रभ, द्वीपकुमारों के इन्द्र--पूर्ण और अवशिष्ट और दिशाकुमार जाति के इन्द्र--अमित और अमितवाहन भी आये। __व्यन्तर जाति के देवों में पिशाचों के इन्द्र--काल और महाकाल । भूतों के इन्द्र-- सुरूप और प्रतिरूप । यक्षों के इन्द्र--पूर्णभद्र और मणिभद्र । राक्षसों के इन्द्र- भीम और महाभीम । किन्नरों के इन्द्र--किन्नर और किं रुष । किंपुरुषों के इन्द्र---सत्पुरुष और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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