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________________ ३७२ तीर्थकर चरित्र - - - - --- - - -- - अतिरिक्त सभी विशेषताएँ मिलती है।" अब रत्नप्रभा भी उन दोनों के साथ, सगी तीन बहिनों जैसी रहने लगी। वामन बना हुआ वीरभद्र प्रतिदिन उपाश्रय में आ कर अपनी तीनों पत्नियों को देख जाता था। उन तीनों को साथ हिल मिल कर रहते देख कर वह प्रसन्न होता था। एक बार राजा के सामने किसी सभासद ने कहा--"नगर के किसी उपाश्रय में तीन अपूर्व सुन्दरी युवतियाँ आई हुई हैं । वे तीनों पवित्र हैं । वे किसी पुरुष से नहीं बोलती। यदि कोई उनसे बोले, तो भी वे पुरुष से नहीं बोलती।" यह सुन कर वामन बने हुए वीरभद्र ने कहा-- "मैं उनमें से एक-एक को अपने से बोला सकता हूँ।" वह बड़े-बड़े अधिकारियों और मुख्य नागरिकों के साथ उपाश्रय में आया। उसने एक मुख्य अधिकारी को पहले ही कह दिया कि “ उपाश्रय में बैठने के बाद मुझे कोई कथा कहने के लिए कहना ।" उपाश्रय में प्रवेश कर के प्रतिनी महासती और अन्य सतियों को वन्दना की और उपाश्रय के द्वार के निकट बैठ गया । वामन को देखने के लिए साध्वीजी के साथ तीनों महिलाएँ भी आ गई । वामन ने कहा--" मैं थोड़ी देर के लिए बैठता हूँ, फिर राजेन्द्र के पास जाने का समय होने पर मैं चला जाऊँगा।" यह सुन कर साथियों में से एक ने कहा--" इतने में कोई आश्चर्यकारक कथा ही सुना दो।" वामन ने कहा-- "सुनी हुई कथा कहूँ, या बीती हुई हकीकत कहूँ ? " उत्तर मिला-"बीती हुई ही सुना दो।" अब वामन कहने लगा;-- "ताम्रलिप्ति नामकी नगरी में ऋषभदत्त सेठ रहते हैं । वे एक बार व्यापारार्थ पमिनीखंड में आये । उन्होंने सागरदत सेठ की सुपुत्री प्रियदर्शना के साथ अपने पुत्र वीरभद्र के लग्न कर दिये। वीरभद्र, प्रियदर्शना के साथ सुखपूर्वक रहने लगा । एक दिन प्रियदर्शना कपट-निद्रा में सोई हुई थी । वीरभद्र उसे जगाने लगा, तब प्रियदर्शना ने कहा;-- " मुझे मत सताइये । मेरे सिर में पीड़ा हो रही है।" -"कैसी पीड़ा हो रही है--मीठी या कड़वी ?" --"मीठी । कड़वी हो मेरे वैरी को।" ---"अच्छा, तो मीठे दर्द की दवा तो मैं खूब जानता हूँ।" " उसी रात प्रियदर्शना को नींद आ जाने के बाद वह उसे छोड़ कर चला गया।" इननी बात कह कर वामन उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- अब मेरे दरबार में जाने का समय हो गया ।" प्रियदर्शना ने वामन से पूछा--" महानुभाव ! फिर बीरभद्र कहाँ गये ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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