________________
३२६
तीर्थङ्कर चरित्र
इतना कह कर देवी चली गई । सुमति विचार-मग्न हुई । उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह मूच्छित हो गई। सावधान होने पर उसने दीक्षा लेने की आज्ञा मांगी। उसकी माँग का सारी सभा ने अनुमोदन किया। वह दीक्षा ले कर तप संयम की आराधना करती हुई कर्मों का क्षय कर के सिद्ध गति को प्राप्त हुई।
__ अनन्तवीर्य वासुदेव, काम-भोग में आसक्त हो, मर कर प्रथम नरक में गये । बलदेव अपराजित, बन्धु-विरह से शोकाकुल होने के बाद विरक्त हो गए और गणधर जयस्वामी के पास, सोलह हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो कर संयम का पालन किया । वे अनशन कर के आयु पूर्ण कर अच्युतेन्द्र हुए।
वासुदेव का जीव प्रथम नरक से निकल कर भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत पर के गगनवल्लभपुर के विद्याधर राजा मेघवान की पत्नी के गर्भ से उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'मेघनाद' दिया गया। यौवनवय प्राप्त होने पर पिता ने उसे राज्य का भार दे कर प्रव्रज्या ले ली । मेघनाद बढ़ते-बढ़ते वैताढय पर्वत की दोनों श्रेणियों का शासक हो गया।
एक बार अच्युतेन्द्र ने अपने पूर्वभव के भाई को देखा और प्रतिबोध करने आया । मेघनाद ने अपने पुत्र को राज्य दे कर दीक्षा लेली । एक बार वे एक पर्वत पर ध्यान कर रहे थे, उस समय उनके पूर्वभव के बेरी, अश्वग्रीव प्रतिवासुदेव के पुत्र ने-जो इस समय दैत्य था, उन्हें देखा और द्वेषाभिभूत हो कर उपसर्ग करने लगा, किन्तु वह निष्फल रहा । मनिराज उग्र तप का आचरण करते हुए अनशन कर के अच्युत देवलोक में इन्द्र के सामानिक देवपने उत्पन्न हुए।
इस जम्बूद्वीप के पूर्व महाविदेह में सीता नदी के दक्षिण किनारे, मंगलावती विजय में रत्नसंचया नाम की नगरी थी। क्षेमंकर महाराज वहाँ के अधिपति थे। उनके रत्नमाला नाम की रानी थी । अपराजित का जीव-जो अच्युतेन्द्र हुआ था, वह अच्युत देवलोक से च्यव कर महारानी रत्नमाला की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। महारानी ने गर्भ धारण करने के बाद चौदह महास्वप्न और १५ वा वज्र देखा । गर्भकाल में महारानी ने स्वप्न में वज्र भी देखा था, इसलिए पुत्र का जन्म होने पर उसका नाम 'वज्रायुध' रखा । वज्रायुध बड़ा हुआ और सभी कलाओं में पारंगत हुआ। उसका विवाह ‘लक्ष्मीवती' नाम की राजकुमारी के साथ हुआ। कालान्तर में अनन्तवीर्य का जीव, अच्युतकल्प से च्यव कर रानी लक्ष्मीवती की कुक्षि से पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'सहस्रायुध' दिया गया । वह बड़ा हुआ। कला-कौशल में प्रवीण हुआ । उसका विवाह कनकधी नाम की एक राजकुमारी के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org