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तीर्थङ्कर चरित्र
ध्याय करने लगे । इतने नगर लोग और श्रीदत्ता उपाश्रय में आये । मुनिराज ने उपदेश दिया। श्रीदत्ता ने सम्यक्त्वपूर्वक व्रत धारण किया और आराधना करने लगी । उदयभाव की विचित्रता से एक बार उसके मन में धर्म के फल में सन्देह उत्पन्न हुआ । एक दिन वह मुनिराज श्रीसुयशजी को वन्दने गई । वहाँ उसने विमान से आये हुए दो विद्याधरों को देखा । वह उनके रूप पर मोहित हो गई और बिना शुद्धि किये ही आयुष्य पूर्ण कर गई ।
जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह की रमणीय विजय में शिवमन्दिर नामका नगर था । कनकपूज्य वहाँ के राजा थे । उनकी वायुवेगा रानी से मेरा जन्म हुआ । मेरे अनिलवेगा नाम की महारानी थी । उसकी कुक्षि से दमितारि का जन्म हुआ। वह यौवनवय को प्राप्त हुआ। एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते भ० शान्तिनाथ हमारे नगर में पधारे । भगवान् का धर्मोपदेश सुन कर मैने दमितारि को राज्य का भार दे कर निग्रंथ दीक्षा अंगीकार की और चारित्र तथा तप की आराधना करते हुए मुझे अभी केवलज्ञान- केवलदर्शन प्राप्त हुआ । दमितारि प्रतिवासुदेव हुआ । उस श्रीदत्ता का जीव दमितारि की मदिरा रानी की कुक्षि से, पुत्री के रूप में तू ( कनकश्री) उत्पन्न हुई । पूर्वभव के धर्म में सन्देह तथा मोहोदय के कारण तू स्त्री के रूप में उत्पन्न हुई और बन्धुबान्धवों का वियोग हुआ, धर्म में किञ्चित् कलंक भी महा दुःखदायक होता है ।"
कनकश्री विरक्त हो गई और उसने वासुदेव तथा बलदेव से निवेदन कर दीक्षा लेने की आज्ञा माँगी । उन्होंने राजधानी में चल कर उत्सवपूर्वक दीक्षा देने का आश्वासन दिया और महर्षि को वन्दना कर के रवाना हो गए।
शुभा नगरी के बाहर युद्ध चल रहा था । दमितारि के पहले से भेजे हुए कुछ वीर और सेना शुभानगरी में आ कर वासुदेव के पुत्र अनन्तसेन के साथ युद्ध कर रहे थे । अनन्तसेन को शत्रुओं से घिर कर युद्ध करते देखते ही बलदेव को क्रोध आ गया। वे अपना हल ले कर शत्रुसेना पर झपटे । बलदेव के प्रहार से दिग्मूढ़ बनी हुई शत्रु सेना अन्धाधुन्ध भागी । नगर प्रवेश के बाद अन्य राजाओं ने शुभ मुहूर्त में महाराजा अनन्तवीर्य का वासुदेव पद का अभिषेक किया। कालान्तर में केवली भगवान् स्वयंभव स्वामी शुभानगरी पधारे । कनकवी ने प्रव्रज्या स्वीकार की और आत्मोत्थान कर मोक्ष प्राप्त किया ।
बलदेव श्री अपराजितजी के 'सुमति' नाम की पुत्री थी । वह बालपन से ही धर्मरसिक थी । वह जीवादि तत्त्वों की ज्ञाता और विविध प्रकार के व्रत तथा तप करती रहती
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