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________________ तीर्थङ्कर परित्र. उसकी माता के पास पहुँचा दिया। ब्राह्मणी, पुत्र की रक्षा के लिए उसे ले कर एक पर्वत की गुफा में छिप गई। उस गुफा में एक अजगर रहता था। वह उस लड़के को निगल गया। वह लड़का राक्षस से बचा, तो अजगर ने खा लिया। इस प्रकार हे महा राज ! जो भवितव्यता होती है, वह तो हो कर ही रहती है । इसलिए मेरा तो यही निवेदन है कि आप तपस्या करें । तपस्या से कठिन कर्म भी क्षय हो जाते हैं ।" चौथे मन्त्री को यह उपाय भी ठीक नहीं लगा । उसने कहा "इस भविष्यवेत्ता ने तो यही कहा है कि-'पोतनपुर के राजा पर बिजली गिरेगी।' इसने यह तो नहीं कहा कि-'महाराज श्रीविजय पर बिजली गिरेगी।' यदि राजा पर ही बिजली गिरने वाली है, तो एक सप्ताह के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को राजा बना दिया जाय और तब तक महाराज पौषधयुक्त रह कर धर्म साधना करें । इस प्रकार महाराज पर का भय दूर हो सकता है।" मन्त्री की उपरोक्त बात मुन कर भविष्यवेत्ता प्रसन्न हुआ। उसने मन्त्री की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की और कहा कि--" मेरे भविष्य ज्ञान से भी आपका मतिज्ञान बहुत ऊँचा है । इस दुरित के परिहार के लिए यह उपाय बहुत उत्तम है । यही होना चाहिए और शीघ्र होना चाहिए । --"अपने जीवन के लिए किसी निरपराध मनुष्य की हत्या करवाना उचित है क्या ? मैं दूसरे का जीवन नष्ट कर के जीवित रहना नहीं चाहता"--मैने (राजा ने) भविष्यवेत्ता और मन्त्री से कहा। -"महाराज ! इसका भी उपाय है। अपन किसी जीवित प्राणी को राजा नहीं बना कर 'वैश्रमण देव की मूर्ति' का ही राज्याभिषेक कर दें। सप्ताह पर्यन्त उसका राज्य रहे । यदि विद्युत्पात हुआ और मूर्ति भंग हो गई, तो अपन विशेष मूल्यवान् मूर्ति बनवा कर प्रतिष्ठित कर देंगे। अपना काम भी बन जायगा और किसी मनुष्य का जीवन भी नष्ट नहीं होगा"-उसी बुद्धिमान मन्त्री ने कहा । मन्त्री की योजना सभी ने स्वीकार कर ली। वैश्रमण देव की मूर्ति, राजसिंहासन पर स्थापित की गई । मैं धर्म-स्थान पर जा कर पौषध व्रत ले कर धर्म साधना करने लगा। जब सातवाँ दिन आया, तो मध्यान्ह के समय आकाश में बादल छा गए । घनघोर वर्षा होने लगी और घोर गर्जना के साथ इतने जोर से बिजली कड़की कि जैसे आकाश को फोड़ रही हो। और एक ऐसी अग्निशिखा उत्तरी-जिसका प्रकाश, अग्नि और सूर्य के तेज से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.ord
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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