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भ: गांतिनाथजी-भविष्यवाणी
में वहाँ विद्युत्पात नहीं होता । इसलिए महाराज, उस गिरि की किसी गुफा में सात दिन रहें, तो रक्षा हो सकती है।"
तीसरे मन्त्री को यह उपाय पसन्द नहीं आया। उसने कहा--"जो भवितव्यता-- होनहार है --निश्चित है, वह तो होगा ही। वह रुक नहीं सकता, न उसमें परिवर्तन ही हो सकता है। इस बात को समझाने के लिए मैं एक कहानी सुनाता हूँ। आप ध्यानपूर्वक सुने ।"
मन्त्री जी कथा कहने लगे--'' एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था। उसके वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई। उसने अनेक देवी-देवता मनाए और कई यन्त्र-मन्त्र-औषधादि का प्रयोग किया। बाद में ढलती उम्र में उसके यहाँ पुत्र का जन्म हुआ । दुर्देव के योग से एक नरभक्षी राक्षस उस नगर में उपद्रव करने लगा। वह प्रतिदिन बहुत से मनुष्यों का हरण कर जाता और उन्हें मार डालता। फिर प्रत्येक मनुष्य में से थोड़ा-थोड़ा मांस खा कर बाकी सब को फेंक देता । राक्षस की इस प्रकार की क्रूरता से सर्वत्र हाहाकार मच गया। राजा के भी सभी प्रयत्न व्यर्थ गए । अंत में राजा ने राक्षस को समझाया कि 'तू रोज इतने मनुष्यों को क्यों मारता है, तेरे खाने के लिए तो एक मनुष्य पर्याप्त है और वह तेरे स्थान पर चला आया करेगा । तुझे यहाँ आने का कष्ट नहीं करना चाहिए।' राक्षस मान गया। नगर निवासियों के सब के नाम की चिट्टियाँ बना कर एकत्रित की गई। उन सब चिट्ठियों में से जिसके नाम की चिट्ठी निकलती, उन्हें राज्य के सैनिक पकड़ कर राक्षस के स्थान पर ले जाते और राक्षस उसे मार कर खा जाता । कालान्तर में उस ब्राह्मण के पूत्र के नाम की चिट्ठी निकली और सैनिक उसे लेने को आये, तो उसकी माता को बड़ा भारी आघात लगा। वह पछाड़ खा कर रोने लगी। उसके करुण क्रन्दन से आस-पास के लोग भी द्रवित हो गए। उस ब्राह्मण के घर के निकट एक भूतघर था, जिसमें बहुत से भूत रहते थे । जब भूतों ने ब्राह्मणी का रुदन सुना, तो उनके मन में भी करुणा भर आई। एक बड़े भूत ने ब्राह्मणी से कहा--
"तू रो मत और तेरे पुत्र को राक्षस के पास ले जाने दे। में उसके पास से छिन कर तेरे पुत्र को ला कर तुझे दे दूंगा। इससे राजाज्ञा का उल्लंघन भी नहीं होगा और तेरा पुत्र भी बच जायगा।" ।
ब्राह्मणी को संतोष हो गया। सैनिक, ब्राह्मण-पुत्र को राक्षस के पास छोड़ कर लौट आए । जब राक्षस उस लड़के को मारने आया, तो भूत ने उसका संहरण कर के
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