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भ० शातिनाथजी---इन्दुसेन और बिन्दुसेन का युद्ध
सुनी, तो उसने सोचा कि--"अब कपिल मुझे छोड़ने वाला नहीं है।" अतएव वह भी उस विषैले कमल को सूंघ कर मृत्यु को प्राप्त हो गई। ये चारों जीव मृत्यु पा कर जम्बूद्वीप के उत्तरकुरु क्षेत्र में युगल मनुष्य के रूप में उत्पन्न हुए। श्रीसेन और अभिनन्दिता तथा शिखिनन्दिता और सत्यभामा, इस प्रकार दो युगल सुखपूर्वक जीवन बिताने लगे।
इधर देवरमण उद्यान में इन्दुसेन और बिन्दुमेन का युद्ध चल रहा था। इतने में एक विद्याधर, विमान द्वारा वहाँ आ पहुँचा। उसने दोनों भाइयों को लड़ते देखा । वह दोनों के बीच में खड़ा रह कर बोला;--
"मूखों ! तुम आपस में क्यों लड़ते हो ? तुम्हें मालूम नहीं कि यह सुन्दरी कोन है ? मैं जानता हूँ--यह तुम्हारी बहिन है । तुम दोनों अपनी बहिन को पत्नी के रूप में प्राप्त करने के लिए लड़ो, यह कितनी लज्जा की बात है ? इस भेद को तुम, मझ से शांतिपूर्वक सुनो।"
विद्याधर ने कहा--" इस जम्बूद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में, सीता नदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती नाम का विस्तृत विजय है। उसके मध्य में विद्याधरों के आवास वाला ऊँचा वैताढ्य नाम का पर्वत है। उस पर्वत की उत्तर की श्रेणी में 'आदित्याभ' नाम का नगर था और 'सुकुण्डली' नाम का राजा राज करता था। उसके अजितसेना नामकी रानी थी। में उसका पुत्र हूँ। मेरा नाम 'मणिकुण्डली' है । मैं एक बार आकाश में उड़ता हुआ, जिनेश्वर को वन्दने के लिए पुंडरिकिनी नगरी में गया। वहाँ अमितयश नाम के केवलज्ञानी भगवंत को वन्दना कर के मैने धर्मोपदेश सुना। देशना पूर्ण होने के बाद मैने प्रभ से पूछा--
"भगवन् ! मैं किस कर्म के उदय से विद्याधर हुआ ?"
प्रभुने फरमाया- "पुष्कर-वर द्वीप के पश्चिम द्वीपार्ध में, शीतोदा नदी के दक्षिण किनारे, सलिलावती विजय में वितशोका' नाम की नगरी थी । उसमें रत्नध्वज नाम का महाबली और रूप-सम्पन्न राजा राज करता था। उसके 'कनकश्री' और 'हेममालिनी' नाम की दो रानियाँ थीं। कनकधी के दो पुत्रियाँ हुई । उनका नाम 'कनकलता' और 'पद्मलता' रखा । दूसरी रानी हेममालिनी के एक कन्या हुई, जिसका नाम 'पद्मा' रखा गया । ये तीनों कन्याएँ अनेक प्रकार की कलाओं का अभ्यास करती हुई यौवनवय को प्राप्त हुई । वे तीनों युवतियें अनुपम सुन्दर थी। इनमें से राजकुमारी पद्मा, महासती श्री अजितसेना के पास वैराग्य प्राप्त कर प्रवजित हो गई। वह तप का आचरण करती हुई विचरती थी । एक दिन वह स्थंडिल भूमि जा रही थी, तब उसने देखा कि मदनमंजरी नाम की एक वेश्या पर लुब्ध हो कर दो कामान्ध राजकुमार युद्ध कर रहे हैं। उन्हें
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