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________________ २८६ तीर्थङ्कर चरित्र मान् पुरुषों का कर्तव्य है कि समस्त दोष के स्थान रूप लोभ को दूर करने के लिए अद्वेत सुख के धाम रूप सन्तोष का आश्रय करना चाहिए । इस प्रकार कषायों को जीतने वाली आत्मा, इस भव में भी मोक्ष-सुख का आनन्द लेती है और परलोक में अवश्य ही अक्षय आनन्द को प्राप्त कर लेती है।" प्रभु की धर्मदेशना सुन कर बहुतों ने दीक्षा ली । बलदेव आदि बहुत-से व्रतधारी श्रावक हुए और वासुदेव आदि सम्यग्दृष्टि बने । केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद दो वर्ष कम ढ़ाई लाख वर्ष तक तीर्थंकर देवाधिदेवपने विचरते रहे। उनके ६४००० साधु, ६२४०० साध्वियाँ, ९०० चौदह पूर्वधर, ३६०० अवधिज्ञानी, ४५०० मनःपर्यवज्ञानी, ४५०० केवलज्ञानी, ७००० वैक्रिय-लब्धि वाले, २८०० वाद-लब्धि वाले, २४०००० श्रावक और ४१३००० श्राविकाएँ हुईं। मोक्ष समय निकट आने पर भगवान् सम्मेदशिखर पर्वत पर पधारे और १०८ मुनियों के साथ अनशन किया । ज्येष्ठ-शुक्ला पंचमी को पुष्य नक्षत्र में एक मास का अनशन पूर्ण कर उन मुनियों के साथ भगवान् मोक्ष पधारे । भगवान् कुमार अवस्था में ढाई लाख, राज्य संचालन में पाँच लाख और चारित्र अवस्था में ढाई लाख, यों कुल दस लाख वर्ष का आयु भोग कर मोक्ष प्राप्त हुए। पाँचवें पुरुषसिंह वासूदेव भी महान कर-कर्म करते हए आय पूर्ण कर के छठे नरक में गए । सुदर्शन, बलदेव ने भ्रातृ-वियोग से दुःखी हो कर संयम स्वीकार किया और विशुद्ध आराधना से समस्त कर्मों का क्षय कर के मोक्ष पधारे । पन्द्रहवें तीर्थंकर भगवान् ॥ धर्मनाथजी का चरित्र सम्पूर्ण ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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