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भ० धर्मनाथजी--धर्मदेशना
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शक्ति आदि का विशेष लाभ पा कर भी महात्मा पुरुष मद नहीं करते।
__ कई मनुष्य नीच कुल के हो कर भी बुद्धि, लक्ष्मी और शील से सुशोभित हैं । उन्हें देख कर उत्तम कुल वालों को कुल का मद नहीं करना चाहिए। (नीच कुल का अर्थ है----- हीनाचार प्रधान वर्ग । जिसे लोग नीच कुल का कहते हैं, उनमें से भी कई उत्तम आचार का पालन करते हैं, तब उत्तम कुल के लिए मद करने का अवकाश ही कहाँ रहा ? ) और जिस मनुष्य ने उत्तम कुल में जन्म ले लिया, परन्तु उत्तम आचार का पालन नहीं कर के दुराचार का सेवन करता है, तो उसके लिए उत्तम कुल में जन्म होने मात्र से क्या लाभ हआ? (वह खद तो दराचार के कारण नीच बन चका. उसके लिए कल का मद लज्जा की बात है) और जो स्वयं ही सुशील एवं सदाचारी है, उसे कुल की अपेक्षा ही क्या ? वह तो अपने सदाचार के कारण आप ही उच्च है । इस प्रकार प्रशस्त विचार से कुल-मद का निवारण करना चाहिए।
__ अपने सामान्य धन के कारण मद करने वाला मनुष्य यह नहीं सोचता कि मेरे पास कितना धन हैं ? स्वर्ग के अधिपति वज्रधारी इन्द्र के यहाँ रहे हुए त्रिभुवन के ऐश्वर्य के आगे मनुष्य का धन किस गिनती में है ? किसी नगर, ग्राम और धन आदि का मद करना क्षुद्रता ही तो है ? सम्पत्ति कुलटा स्त्री के समान है। वह कभी उत्तम गुणवान् पुरुष के पस से निकल कर दुर्गुणी--दुराचारी के पास भी चली जाती है और वहाँ रह जाती है । इसलिए जो विवेकशील हैं, उन्हें ऐश्वर्य की प्राप्ति से मद कभी नहीं होता।।
बलवान् योद्धा को भी जब रोग लग जाता है, तो वह निर्बल हो जाता है । इससे प्रत्यक्ष सिद्ध होता है कि बलवान् व्यक्ति भी रोग, जरा, मृत्यु और कर्म-फल के सामने निर्बल ही है । बल अनित्य एवं अस्थायी है । ऐसे नाशवान् शारीरिक बल का मद करना भी अविवेकी और अनसमझ का काम है ।
सात घृणित धातुओं से बने हुए शरीर में हानि और वृद्धि होती रहती है । पुद्गल मय शरीर हानि-वृद्धि धर्म से युक्त है । जरा और रोग से शरीर का पराभव होना भी प्रत्यक्ष है । जो आज सुन्दर दिखाई देता है, वह रोग-जरा आदि से असुन्दर--कुरूप भी हो जाता है । इस प्रकार विद्रूप बनने वाले रूप का मद कौन बुद्धिमान करेगा? भविष्य में सन कुमार नाम के एक चक्रवर्ती होंगे। वे मनुष्यों में बड़े सुन्दर रूप वाले माने जावेंगे। किन्तु उनके उस रूप का क्षण मात्र में परिवर्तन हो जायगा। इस प्रकार सुन्दर रूप की विडम्बना सुन कर, रूप का मद नहीं करना चाहिए ।
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