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________________ २७४ उन्होंने कहलाया कि--' अभी तुम दोनों बालक हो । कोई शत्रु तुम्हें सतावे और पराभव कर दे, तो यह भी दुःखद होगा । मैने तुम्हारे पिता को उच्च पद दिया है । तुम्हें उसका निर्वाह करने के योग्य बनाना है । इसलिए तुम दोनों यहाँ मेरे पास आ कर रहो । वहाँ के प्रबन्ध की उचित व्यवस्था हो जायगी ।" दूत की बात सुन कर क्रोधाभिभूत हो, राजकुमार पुरुषसिंह ने कहा 'इक्ष्वाकु वंश में चन्द्र समान एवं सर्वोपकारी ऐसे हमारे पिताश्री के स्वर्गवास से " तीर्थङ्कर चरित्र अनेक मित्र राजाओं को दुःख हुआ है । निशुंभ को भी दुःख हुआ - तुम कहते हो, किंतु हम भी सिंह के बच्चे हैं । सिंह किसी का दिया हुआ दान नहीं लेता । यह राज हमारा है । हम इसको सम्भाल लेंगे । यदि किसी की इस पर कुदृष्टि होगी, तो हम इसकी रक्षा का उपाय कर लेंगे । इसकी चिंता आपके राजा को नहीं करनी चाहिए ।" दूत ने कहा -- " तुम बच्चे हो । चाहिए । इसी में तुम्हारा हित है । परिणाम बहुत बुरा होगा ।" तुम्हें अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना यदि तुम उनकी इच्छा का आदर नहीं करोगे, तो --" दूत ! विशेष बात करना उचित नहीं है । तुम अपने स्वामी से कह दो कि हम उनकी इच्छा के आधीन नहीं हैं । हमें अपनी शक्ति का भरोसा है । इसी के बल पर हम स्थिर रह कर आगे बढ़ते जावेंगे ।” दूत की बात सुन कर निशुंभ क्रोधायमान हुआ और सेना ले कर अश्वपुर पर चढ़ाई कर दी । इधर दोनों बन्धु भी अपनी सेना ले कर अपने राज्य की सीमा पर आ पहुँचे । भयानक युद्ध हुआ । अंत में निशुंभ के छोड़े हुए अंतिम अस्त्र (चक्र) के प्रहार से ही पुरुषसिंह द्वारा निशुंभ मारा गया। वह पाँचवाँ प्रतिवासुदेव कहलाया और पुरुषसिंह ने उसके समस्त राज को अपने आधीन कर लिया । उनका पाँचवें वासुदेव पद का अभिषेक हुआ । सुदर्शनजी बलदेव पद पाये । X X X X दो वर्ष तक छद्मस्थ पर्याय में रहने के बाद भगवान् श्री धर्मनाथ स्वामी को पौषशुक्ला पूर्णिमा को पुष्य नक्षत्र में केवलज्ञान - केवलदर्शन प्राप्त हुआ। देवों ने समवसरण रचा । तीर्थ स्थापना हुई । 'अरिष्ट' आदि ४३ गणधर हुए। भगवान् ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अश्वपुर पधारे । वासुदेव और बलदेव भी भगवान् को वन्दन करने आये । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया ; Jain Education International -- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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