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म. वासुपूज्यजी - द्विपृष्ट वासुदेव न
और अन्य सभी सार पदार्थ ले कर अपने स्थान पर चला गया। पराजित पर्वत नरेश ने श्री संभवाचार्य के समीप श्रमण दीक्षा स्वीकार की और कठोर साधना तथा उग्र तप करते हुए निदान किया कि -- '' आगामी भव में में विध्यशक्ति का काल बनूं ।" अंत में अनशन कर के मृत्यु पा कर प्राणत देवलोक में देव हुआ। राजा विन्ध्यशक्ति भी भव भ्रमण करता हुआ एक भव में मुनिव्रत लिया और मृत्यु पा कर देव हुआ । वहाँ से च्यव कर विन्ध्यशक्ति का जीव विजयपुर में श्रीवर राजा की श्रीमती रानी की उदर से 'तारक' नाम का पुत्र हुआ। वह शूर-वीर एवं पराक्रमी था । उसने अर्धभरत क्षेत्र को जीत कर अपने अधिकार में कर लिया ।
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सौराष्ट्र देश की प्रसिद्ध 'द्वारिका' नगरी में 'ब्रह्म' राज्याधिपति था। उसके 'सुभद्रा' और 'उमा' ये दो पटरानियाँ थीं । 'पवनवेग' का जीव, अनुत्तर विमान से च्यव कर महारानी सुभद्रादेवी की कुक्षि में आया । महारानी ने चार महास्वप्न देखे । पुत्र का नाम 'विजय' रखा । वह गौरवर्ण वाला अनेक प्रकार के सुलक्षणों से युक्त था । राजकुमार का लालन-पालन उत्तमोत्तम रीति से होने लगा । योग्य वय में सभी कलाओं में पारंगत हो कर वह महान् वीर हो गया। कालान्तर से महारानी उमादेवी की कुक्षि में, पर्वत का जीव, प्राणत देवलोक से स्यव कर आया । महारानी ने सात स्वप्न देखे । पुत्र का नाम 'द्विपृष्ट' रखा । द्विपुष्ट, श्याम वर्ण वाला, सुन्दर और अनेक शुभलक्षणों से युक्त बालक था । वह क्रमशः बढ़ने लगा । राजकुमार विजय की, अपने छोटे भाई पर अत्यधिक प्रीति थी । वह द्विपृष्ट के प्यार में, उसे खेलाने खिलाने और प्रसन्न रखने में ही अपना विशेष समय लगा देता था । वय प्राप्त होने पर द्विपृष्ट भी सभी कलाओं में पारंगत हो कर वीर शिरोमणि एवं अनुपम योद्धा हो गया । दोनों राजकुमार महाबली थे ।
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द्वारकाधिपति ब्रह्म नरेश, अर्धभरत क्षेत्र के स्वामी तारक के आधीन थे । वे उसकी आज्ञा में रह कर राज करते थे । किंतु उनके पुत्र विजय और द्विपृष्ट कुमार को तारक का शासन असह्य हो रहा था। वे तारक की आज्ञा में रहना नहीं चाहते थे । वे वचन से और कार्य से तारक नरेश का विरोध तथा अवज्ञा करते रहते थे । गुप्तचरों ने तारक नरेश के सामने कुमारों की प्रतिकूलता का वर्णन करते हुए 'स्वामी ! द्वारिका के राजा ब्रह्म के दोनों पुत्र बड़े ही
कहा ; -
("
धृष्ट एवं दुर्मद हो गए
हैं । वे आपका अनुशासन नहीं मानते और निधड़क निन्दा करते हैं
।
वे योद्धा हैं और सभी
शास्त्रों के ज्ञाता हैं । उनकी बढ़ी हुई शक्ति आपके लिए हितकारी नहीं होगी । आपको
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