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________________ भ० श्रेयांसनाथजी पृष्करवर दीपार्द्ध के 'कच्छ' नाम के विजय में 'क्षेमा' नाम की एक नगरी थी। 'नलिनिगुल्म' नाम का राजा वहाँ का अधिपति था। उसके मन्त्री बड़े कुशल और योग्य थे। उसका धन भण्डार भरपूर था। हाथी, घोड़े और सेना विशाल तथा शक्तिशाली थी। इस प्रकार धन, सम्पत्ति, बल और प्रताप में बढ़-चढ़ कर होने पर भी नरेश, धन, यौवन और लक्ष्मी को असार मान कर अति लुब्ध नहीं हुआ था। कामभोग के प्रति उसकी उदासीनता बढ़ रही थी। अंत में उन्होंने राजपाट छोड़ कर वज्रदत्त मुनि के समीप निग्रंथप्रव्रज्या स्वीकार कर ली और उग्र साधना तथा तप से आत्मा को पवित्र करते हुए तीर्थंकर नामकर्म का बन्ध कर लिया । प्रशस्त ध्यान युक्त काल कर के महाशुक्र नाम के सातवें देवलोक में उत्पन्न हुए। इस जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में सिंहपुर नाम का एक समृद्ध नगर था । 'विष्णुराज' नरेश वहाँ के अधिपति थे । उनकी रानी का नाम भी विष्ण' था। देवलोक से नलिनिगुल्म मुनि का जीव अपना उत्कृष्ट आयु पूर्ण कर के विष्णु देवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। विष्णुदेवी ने चौदह महा स्वप्न देखे । भाद्रपद-कृष्णा द्वादशी को 'श्रवण' नक्षत्र में पुत्र का जन्म हुआ। श्रेयस्कारी प्रभाव के कारण माता-पिता ने 'श्रेयांस' नाम दिया। यौवनवय में राजकुमारियों के साथ लग्न किये । २१००००० वर्ष तक कुमार-पद पर रह कर, पिता द्वारा प्रदत्त राज्य के अधिकारी हुए । ४२००००० वर्षों तक राज किया। इसके बाद विरक्त हो कर वर्षीदान दिया और फाल्गुन-कृष्णा १३ के दिन श्रवण नक्षत्र में, बेले के तप के साथ प्रव्रज्या स्वीकार की । प्रभु का प्रथम पारणा सिद्धार्थ नगर के नन्द राजा के यहाँ परमान्न से हुआ । पाँच दिव्य प्रकट हुए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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