SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ० सुविधिनाथजी--धर्मदेशना देव की आराधना, गुरुसेवा, पात्र-दान, दया, क्षमा, सरागसंयम, देशविरति, अकामनिर्जरा, शौच ( भावविशुद्धि, निरतिचार व्रत पालनादि ) और बालतप-ये सातावेदनीय कर्म बाँधने के आस्रव हैं। स्व, पर अथवा स्वपर (उभय) को दुःख, शोक, वध, ताप, आक्रन्द और विलाप अथवा पश्चात्ताप उत्पन्न करना या करवाना--ये असातावेदनीय कर्म बाँधने के कारण हैं । वीतराग भगवंत के, शास्त्र के, संघ के. धर्म के और सभी देवताओं के अवर्णवाद बोलना (बुराई करना--निन्दा करना) मिथ्यात्व के तीव्र परिणाम करना, सर्वज्ञ भगवान् और सिद्ध भगवान् का निन्हव बनना (उनमें देवत्व नहीं मानना, उनके विपरीत बोलना, उनके गुणों का अपलाप करना आदि) धार्मिक मनुष्यों को दोष देना, उनकी निन्दा करना, उन्मार्ग का उपदेश करना, अनर्थ का आग्रह करना, असंयमी का आदर सत्कार एवं पूजा करना, बिना विचारे कार्य करना और गुरु आदि की अवज्ञा करना इत्यादि कुकृत्यों से दर्शनमोहनीय-कर्म का आस्रव होता है । कपाय के उदय से आत्मा के तीव्र परिणाम होना--चारित्र-मोहनीय कर्म बाँधने का कारण है। किसी की हँसी करना, सकाम उपहास (स्त्रियादि से कामोत्पादक हँसी करना) विशेष हँसने की आदत, वाचालता और दीनता बताने की प्रवृत्ति- हास्य-मोहनीय कर्म का आस्रव है। देश-विदेश में भ्रमण कर नये-नये दृश्य देखने की इच्छा, अनेक प्रकार के खेल खेलना और दूसरों के मन को अपनी ओर आकर्षित करना--वशीभूत करना ये-रतिमोहनीय के आस्रव है। ___असूया = घृणा (गुणों को भी दोष रूप में देखना) पाप करने की प्रकृति दूसरे की सुख शान्ति नष्ट करना और किसी का अनिष्ट होता हुआ देख कर खुश होना, यह अरतिमोहनीय के आस्रव हैं। स्वयं अपने मन में भय को स्थान देना, दूसरों को भयभीत करना, त्रास देना और निर्दय बनना-भय-मोहनीय कर्म का आस्रव है। स्वयं शोक उत्पन्न कर के चिन्ता करना, दूसरों के हृदय में शोक एवं चिन्ता उत्पन्न करना और रुदन करने में अति आसक्ति रखना, ये शोक-मोहनीय कर्म के आस्रव हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy