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भ० ऋषभदेवजी--स्वयं बुद्ध का उपदेश
थे-१ स्वयंबुद्ध २ संभिन्नमति ३ शतमति और ४ महामति । इन चारों में स्वयंबुद्ध विशेष त्रुद्धिमान् सम्यग्दृष्टि और राजा का हितचिंतक था। एक बार स्वयंबुद्ध को विचार हुआ कि--
" मेरा स्वामी काम-भोगों में डूब रहा है। इन्द्रियों के विषय रूपी शत्रु ने राजा को अपने अधिकार में कर लिया है । इस प्रकार स्वामी को मनुष्य-जन्म व्यर्थ गवाते देख कर भी नहीं बोलूं और चुपचाप देखा करूँ, तो यह मेरी कर्त्तव्य-विमुखता होगी। मेरा कर्तव्य है कि मैं महाराज को काम-भोगों से मोड़ कर धर्म के मार्ग पर लगाऊँ।" इस प्रकार सोच कर यथावसर स्वयंबुद्ध ने नम्रतापूर्वक महाराज महाबल से निवेदन किया
"महाराज ! यह संसार समुद्र के समान है। जिस प्रकार नदियों के जल से समुद्र तृप्त नहीं होता और समुद्र के जल से बड़वानल (समुद्र में रही हुई अग्नि) तृप्त नहीं होता, जीवों की मृत्यु से यमराज (काल) और काष्ठ-भक्षण से अग्नि तृप्त नहीं होती, वैसे ही यह मोही आत्मा, विषय-भोग से तृप्त नहीं हो सकती । आकांक्षा बढ़ती ही रहती है। किंतु जिस प्रकार नदी के किनारे की छाया, दुर्जन, विष और विषधर प्राणी की अत्यन्त निकटता-विशेष सेवन, दुःखदायक होता है, उसी प्रकार विषयों की आसक्ति भी अत्यन्त दुःखदायक होती है। कामदेव का सेवन तत्काल तो सुख देता है, किंतु परिणाम में विरस एवं दुखद होता है और खुजाले हुए दाद की खुजली के समान वासना बढ़ाता ही रहता है । यह कामदेव नरक का दूत, व्यसन का सागर और विपत्ति रूपी लता का अंकुर है । पाप-रूपी कटु फलदायक वृक्ष का सिंचन करने वाली जलधारा भी काम-भोग ही है। कामदेव (मोह) रूपी मदिरा में मदमत्त हुआ जीव, सदाचार के मार्ग से हट कर दुराचार के खड्डे में गिर जाता है और भवभ्रमण के जंजाल में पड़ जाता है। जिस प्रकार घर में घुसा चूहा, घर में अनेक खड्डे खोद कर बिल बना देता है, उसी प्रकार जिस आत्मा में कामदेव प्रवेश करता है, उसमें धर्म अर्थ और मोक्ष को खोद कर खा जाता है।"
"स्त्रियाँ, दर्शन, स्पर्श और उपभोग से अत्यन्त व्यामोह उत्पन्न करती है । स्त्रियाँ काम रूपी शिकारी की जाल है ।
"वे मित्र भी हितकारी नहीं होते, जो खाने-पीने एवं विलास के साथी हैं। वे मन्त्री अपने स्वामी का भावी हित नहीं देख कर स्वार्थ ही देखते हैं। ऐसे लोग अधम हैं-- जो स्वार्थरत, लम्पट और नीच हैं और लुभावनी बातें करते हुए स्वामी को स्त्रियों के मोह में डुबाने के लिए वैसी कथा, गीत, नृत्य एवं कामोद्दीपक वचनों से मोहित कर
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