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________________ एक दिन विद्याधर- पति महाराज शतबल, एकान्त में बैठे हुए अशुचि भावना में मग्न हो कर सोचने लगे तीर्थंकर चरित्र - " 'अहो ! यह शरीर स्वभाव से ही अशुचिमय है । ऊपर के आवरणों से ही यह शोभायमान हो रहा है । इसकी स्वाभाविक अशोभनीयता कब तक ढकी रहेगी ? प्रतिदिन शोभा सत्कार करते हुए, यदि एक दिन भी इसकी सजाई नहीं की जाय, तो दुष्ट मनुष्य के समान यह शरीर तत्काल अपने विकार प्रकट कर देता है। बाहर निकले हुए विष्टा, मूत्र, कफ, श्लेष्मादि से मनुष्य घृणा करता है, किंतु वह यह नहीं सोचता कि हमारे शरीर के भीतर क्या है ? यही तो भरा है । जिस प्रकार जीर्ण वृक्ष को कोटर में साँप, बिच्छु आदि जन्तु रहते हैं, उसी प्रकार शरीर में भी अनेक प्रकार के कृमि और दुःखदायक रोग भरे हैं । यह शरीर शरदऋतु मेघ के समान स्वभाव से ही नाश होने योग्य है । यौवन-लक्ष्मी विद्युत् चमत्कार के सदृश है और देखते-देखते ही चली जाती है । आयुष्य भी पताका के समान चपल है और संपत्ति जल तरंग के तुल्य तरल है । भोग, भुजंग के फण के समान विषम है और संगम, स्वप्न की तरह मिथ्या है । इस शरीर में रही हुई आत्मा, कामक्रोधादि के ताप से तप्त हो कर दिन-रात पक रही है । इस प्रकार शरीर की दशा स्पष्ट दिखाई देते हुए भी अज्ञानी जीव, दुःखदायक परिणाम वाले विषयों में सुख मानते हैं और अशुचि स्थान में रहे हुए कीड़े के समान उसी में प्रीति करते हैं। उन्हें वैराग्य क्यों नहीं प्राप्त होता ? वे परम सुखदायक ऐसे धर्म और मोक्ष - पुरुषार्थ में पराक्रम क्यों नहीं करते ? .. मुझे यह सुअवसर प्राप्त हुआ है । अब विलम्ब करना उचित नहीं ।" इस प्रकार विचार कर के राजा ने युवराज महाबल का राज्याभिषेक किया और स्वयं धर्माचार्य के समीप निग्रंथ - प्रव्रज्या ग्रहण की । बहुत वर्षों तक चारित्र का स्वर्गवासी हुए । पालन कर के Jain Education International स्वयं बुद्ध का उपदेश महाराज महाबल कुशलतापूर्वक राज्य का संचालन करने लगे और मनुष्य सम्बन्धी - काम भोग भोगने लगे । वे काम भोग में अत्यन्त आसक्त हो गए थे। राज्य संचालन अनेक मन्त्रियों द्वारा होता था । मुख्यमन्त्री चार थे । चारों मुख्य मन्त्रियों के नाम इस प्रकार For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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