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तीर्थंकर चरित्र
भी कर्मोदय से मर कर चाण्डालपने उत्पन्न हो जाता है । स्वामी मर कर सेवक और प्रजापति मर कर एक तुच्छ कीड़ा हो जाता है । संसारी जीव, कर्मोदय से भाड़े की कुटिया के समान एक योनि छोड़ कर दूसरी, यों विभिन्न योनियों में भटकते ही रहते हैं, एक योनि छोड़ कर दूसरी में प्रवेश करते हैं । इस समस्त संसार में, एक बाल के अग्रभाग पर आवे, उतना भी स्थान ऐसा नहीं है कि जिसे कर्म के वश हो कर इस जीव ने अनेक रूप धारण कर के, उस स्थल का स्पर्श नहीं किया हो । इस प्रकार संसार भावना का विचार करना चाहिये ।
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भगवान् ने सोलह पूर्वांग कम एक लाख पूर्व तक संयम पाला । इस प्रकार कुल तीस लाख पूर्व का आयुष्य भोग कर, मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी को चित्रा नक्षत्र में, एक मास के संथारे से सम्मेदशिखर पर्वत पर ३०८ मुनियों के साथ सिद्ध गति को प्राप्त हुए । प्रभु के 'सुव्रत' आदि १०७ गणधर हुए और ३३०००० साधु, ४२०००० साध्वी, २३००० चौदह पूर्वधर, १०००० अवधिज्ञानी, १०३०० मनः पर्यवज्ञानी, १२००० केवलज्ञानी, १६८०० वैक्रिय लब्धिधारी, ६६०० वादलब्धि सम्पन्न, २७६००० श्रावक और ५०५००० श्राविकाएँ हुई ।
* त्रि.श. पुं. च. में चौदह पूर्वधर २२०० बताये हैं ।
छठे तीर्थंकर
भगवान्
|| पद्मप्रभःजी का चरित्र सम्पूर्ण ||
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