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________________ भ० अजितनाथजी-भगवान् का निर्वाण १५७ लेते ही धर्मराज्य-आत्मलक्ष्मी साधने में तत्पर हो गए और संयम तथा तप के प्रबल पराक्रम से घातिकर्मों को सर्वथा नष्ट कर के सर्वज्ञ-सर्वदर्शी भगवान् बन गए। भगवान का निर्वाण भगवान् श्री अजितनाथजी के ९५ गणधर हुए । मुनिवर एक लाख, महासती मंडल तीन लाख तीस हजार, ३०५० चौदह पूर्वधारी, १४५० मनःपर्यवज्ञानी, ६४०० अवधिज्ञानी, २३००० केवलज्ञानी, ३२४०० वादी, २०४०० वैक्रिय लब्धिधारी, २६८००० श्रावक और ५४५००० श्राविकाएँ थीं। दीक्षा के बाद एक पूर्वांग कम लाख पूर्व व्यतीत होते, अपना निर्वाण काल उपस्थित जान कर प्रभु समेदशिखर पर्वत पर चढ़े। उन्होंने एक हजार श्रमणों के साथ पादपोपगमन अनशन किया । एक मास का अनशन पूर्ण कर के चैत्र-शुक्ला पञ्चमी के दिन मृगशिर नक्षत्र में चन्द्रमा आने पर, पर्यङ्कासन से प्रभु अपना बहत्तर लाख पूर्व आयु पूर्ण होते मोक्ष पधारे। इन्द्रों ने प्रभु का निर्वाण उत्सव किया। भगवान् श्री अजितनाथ स्वामी अठारह लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रहे । तिरपन लाख पूर्व और एक पूर्वांग तक राज किया। बारह वर्ष छद्मस्थ रहे और एक पूर्वाग तथा बारह वर्ष कम एक पूर्व तक केवलज्ञानी तीर्थकर पद का पालन कर मोक्ष पधारे। दूसरे तीर्थंकर भगवान् ॥अजितनाथजी का चरित्र सम्पूर्ण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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