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________________ तीर्थंकर चरित्र पौत्र भगीरथ का राज्याभिषेक किया। इतने में उद्यान पालक ने तीर्थंकर भगवान् अजितनाथजी के शुभागमन की बधाई दी। महाराज, भगवंत को वंदन करने गये और भगवान् की धर्मदेशना सुन कर प्रव्रज्या प्रदान करने की प्रार्थना की । भगीरथ ने सगर महाराज का अभिनिष्क्रमण महोत्सव किया। सगर महाराज सर्वत्यागी निग्रंथ हो गए । आपके साथ अनेक सामन्तों और मन्त्रियों ने भी दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद सम्राट ज्ञानाभ्यास एवं संयम की साधना में तत्पर हो गए । संसार में राज्य-साधना में अग्रसर हुए थे, तो दोक्षा अस्थियाँ भी गंगा के साथ समुद्र में प्रक्षिप्त की । भगीरथ ने अपने पितओं की अस्थियाँ ज उसका अनुकरण लोग अब तक करते हैं। (वैदिक सम्प्रदाय भी गंगा को 'भागीरथी' के नाम से पुकारता है। उनका कहना है कि राजा दिलीप का पुत्र भगीरथ, घोर तपस्या कर के गंगा को आकाश से उतार कर पृथ्वी पर लाये, इसी से यह 'भागीरथी' कहलाई) भगीरथ वापिस लौट रहा था। रास्ते में उसे केवलज्ञानी भगवंत के दर्शन हए । उसने अपने पिता, काका आदि के एक साथ भस्म हो जाने का कारण पूछा । केवली भगवान् ने कहा-'एक संघ तीर्थयात्रा करने जा रहा था । वह चोरपल्ली के पास पहुँच कर वहीं ठहर गया। ऋद्धि-सम्पन्न संघ को देख कर ग्रामवासी चोर लोग खुश हुए। उन्होने उसे लूटने का विचार किया। किंतु एक कुंभकार ने उन्हें समझाया कि यह तो धर्मसंघ है। इसे सताना अच्छा नहीं है। कुम्हार के समझाने से संघ सुरक्षित रहा। कालान्तर में राजा ने कुपित हो कर चोरपल्ली को ही जला डाला। वहाँ के निवासी सभी जल मरे, केवल वह कुंभकार ही-अन्यत्र चला गया था, सो बच गया। कुंभकार आयुष्य पूर्ण होने पर विराट देश में एक धनाढय व्यापारी हुआ और ग्रामवासी चोर वहाँ के साधारण मनुष्य हए। कुंभकार का जीव वहाँ से मर कर उसी देश का राजा हुआ वहाँ से मर कर ऋद्धिवंत देव हुआ और देवभव पूर्ण कर के तुम भगीरथ के रूप में जन्मे । वे ग्रामवासी भवान्तर में तुम्हारे पिता और काका हए। उन्होंने ही संघ का विनाश चाहा था, उस पाप से वे सभी एक साथ भस्मीभूत हो गए। तुमने चोरों को समया कर संघ को बचाया, इसलिए तुम वहाँ भी बचे ओर यहाँ भी उस विनाश से बचे। यह सुन कर भगीरथ विरक्त हआ, किंतु पितामह की शोक-संतप्त स्थिति देख कर-'उन्हें दुःख नहीं हो'--यह सोच कर वह दीक्षित नहीं हो कर स्वस्थान चला आया । x साठ हजार पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में भी मतभेद है। एक मत तो यह है कि इसकी माता भिन्न-भिन्न थी, किंतु दूसरा मत है कि इन सभी की एक ही माता थी। भोजचरित्र' के अनुसार एक देव ने चक्रवर्ती को एक फल दिया। उस फल के टुकड़े सभी रानियों में बाँटे जाते, तो सभी को पुत्र होते, किंतु पटरानी ने पाटवी पुत्र की माता बनने के लोभ में पूरा फल खा लिया। उसे गर्भ रहा और कोटे-मकोडे जैसे साठ हजार पुत्र उनके गर्भ से जन्में। उन्हें घत और रुई में रख कर पालन किया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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