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भ० ऋषभदेवजी--पूर्वभव--धन्य सार्थवाह
आपको वही वस्तु अर्पण करेंगे, जो आपके योग्य होगी।"
सार्थ-संघ ने प्रस्थान किया। आचार्यश्री भी आनी शिष्य-मण्डली के साथ ईर्यासमिति युक्त विहार करते हुए चलने लगे । सार्थ बहुत बड़ा था। हजारों मनुष्य साथ थे। खाने-पीने का सामान, व्यापार की चीजें और बिस्तर, वस्त्र, बरतन आदि ढोने के लिए तथा रास्ते में पानी ले कर साथ चलने में बैल, गधे, खच्चर आदि हजारों पशु थे । सार्थ
। सशस्त्र सेना भी साथ थी। जाना बहुत दूर था। शीतकाल में प्रस्थान किया, किन्तु उष्णकाल भी बीत चुका और वर्षाकाल आया। वर्षा के कारण सभी मार्ग रुक गये । गमनागमन रुक गया । सार्थपति ने वर्षाकाल बिताने के लिए उचित स्थान पर पड़ाव डालने की आज्ञा दी। तम्बू तन गये। अस्थायी निवास की व्यवस्था हो गयी। आचार्यादि भी एक स्थान में ठहर गये। वर्षाकाल लम्बा था और साथ में मनुष्य भी बहुत हो गये थे । अतएव खाद्य सामग्री कम हो गई थी। भावी संकट की आशंका से सार्थपति धन्य सेठ चिन्तित रहने लगे। उन्हें अचानक स्मरण हो आया कि--"मैं धर्मघोष आचार्य को साथ लाया और उनके अनुकूल व्यवस्था करने का वचन दिया, किन्तु आज तक मैने उनसे पूछा भी नहीं, याद भी नहीं किया । अहो ! मैं कितना दुर्भागी हूँ। मैने महात्माओं की उपेक्षा की। उन अकिंचन महाव्रतियों का जीवन अब तक कैसे चला होगा ? अब मैं उन्हें अपना मुंह भी कैसे दिखाऊँ"--वह चिन्ता से छटपटाने लगा। अन्त में निश्चय किया कि प्रातःकाल होते ही आचार्यश्री के चरणों में उपस्थित हो कर क्षमा माँगू और प्रायश्चित्त करूँ। उसके लिए शेष रात्रि बिताना कठिन हो गया। प्रातःकाल होते ही वह कुछ योग्य साथियों के साथ आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित हुआ। उसने देखा कि--
आचार्य ज्ञान, दर्शन और चारित्र से सुशोभित हैं । उनके मुखकमल पर शांति एवं सौम्यता स्पष्ट हो रही है । तप के शांत तेज की आभा से उनका चेहरा देदीप्यमान हो रहा है। उनके परिवार के साधुओं में कोई ध्यान-मग्न है, तो कोई स्वाध्यायरत । कोई वन्दन कर रहा है, तो कोई पृच्छा । कोई सीखे हुए ज्ञान की परावर्तना कर रहा है, तो कोई वाचना ही ले रहा है। सभी संत किसी न किसी प्रकार की साधना में लगे हए हैं। वे सभी टूटी-फूटी एवं जीर्ण निर्दोष झोंपड़ी में बैठे हुए हैं ।
सार्थपति आदि ने आचार्यश्री और अन्य महात्माओं को वन्दन किया और उनके सम्मुख बैठ कर निवेदन किया--
“भगवन् ! मैं आपश्री का अपराधी हूँ। मैने आपकी सेवा करने का वचन दिया
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