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भ० अजितनाथ जी--पुत्रों का सामूहिक मरण
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कर्म के उदय से भ्रमण-काल में ही किसी निमित्त से उनकी एक साथ मृत्यु हो गई ।
* 'त्रिशष्ठिशलाका पुरुष चरित्र' में यहाँ एक कथा दी है, जिसमें लिखा है कि सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र एक साथ देशाटन के लिए निकले। उनके साथ स्त्री-रत्न को छोड़ कर चक्रवर्ती के १३ रत्न भी थे और सुबद्धि आदि अमात्य भी। वे घमते-घूमते अष्टापद पर्वत के निकट आये और उस पर के भव्य मन्दिर को देखा-जिसमें भगवान आदिनाथ, अजितनाथ और भविष्य के २२ तीर्थंकरों की मूर्तियाँ थी । वहाँ ऋषभपुत्रों आदि के चरण एवं मतियाँ भी थी। उन्होंने उनकी पूजा-वन्दनादि की। फिर उन्होंने सोचा-'यह पवित्र तीर्थ भविष्य में इसी प्रकार स्थिर एवं सुरक्षित रहे । अर्थलोलप
और अधम मनुष्यों के द्वारा इसको क्षति नहीं पहुँचे, इसका प्रबन्ध हमें करना चाहिए । इस पवित्र पर्वत को मनुष्य की पहुंच से बचाने के लिए आस-पास एक बड़ी खाई खोद कर गंगा का पानी भर देना चाहिए।' इस प्रकार सोच कर और दण्डरत्न से पृथ्वी खोद कर खाई बनाने लगे । एक हजार योजन गहरी खाई खुद गई । खाई खुदने से भवनपति के नागकुमार जाति के देवों के भवन टूटने लगे । अपने भवन टूटने से सारा नागलोक क्षुब्ध हो गया। सर्वत्र भय, त्रास और हाहाकार मच गया। ऐसी स्थिति देख कर नागकुमार देवों का राजा ''ज्वलनप्रभः' पृथ्वी से बाहर निकल कर, सगर चक्रवर्ती के पुत्रों के पास आया और क्रोधाभिभूत हो कर पृथ्वीदारण का कारण पूछा। उनका शुभाशय और विनय देख कर वह शान्त हो कर लौट गया। उसके जाने के बाद उस खाई को पानी से भरने के लिए, गंगा नगो के किनारे पर दण्डरत्न का प्रहार किया और नहर बना कर पानी पहुंचाया। वह गंगाजल उस कृत्रिम खाई में गिर कर नागकुमार के भवनों में पहुँचा। उनके भवन पानी से भर गए । नागकुमारों में पुन: त्रास बरत गया। उनका अधिपति, इस विपत्ति से भयंकर कुपित हुआ और बाहर निकल कर सभी-साढ हजार सगर पूत्रों को अपनी क्रोधाग्नि से जला कर भस्म कर दिया। पृथ्वी पर हाहाकार मच गया। सगर चक्रवर्ती के ज्येष्ठ पुत्र जन्हुकुमार द्वारा गंगा का पानी अष्टापद तक लाया गया, इससे गंगा का दूसरा नाम 'जान्हवी'x पडा।
यह संक्षिप्त कथा आई है। किन्तु इसकी बास्तविकता विचारणीय लगती है। कुछ खास बातें तो ऐसी है कि जिनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। जैसे--.
(१) प्रथम पर्व के छठे सर्ग में लिखा है कि भरतेश्वर ने आठ योजन ऊँचे इस अष्टापद पर्वत पर 'सिंहनिषद्या' चैत्य और स्तुप बनवाने के बाद उन तक कोई मनुष्य नहीं । सके, इसके लिए 'लोहे के यन्त्र निमित आरक्षक खड़े किये' और पर्वत को छिलवा कर स्तंभ के समान सीधा-सपाट बना दिया, साथ ही प्रत्येक योजन पर मेखला के समान आठ सोपान बनाये । इस प्रकार के प्रयत्न से वह मनुष्यों के लिए दुर्गम ही नहीं, अगम हो गया था और पर्वत पर लोह-पुरुष रक्षक थे ही। फिर खाई खोदने की क्या आवश्यकता थी?
x वैदिक साहित्य में 'जन्हु ऋषि' से उत्पन्न होने के कारण गंगा का नाम 'जान्हवी' बताया है।
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