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भ. अजितनाथजी--शद्धभट का परिचय
प्रव्रज्या स्वीकार करने वालों में श्री सिंहसेन' आदि ६५ महापुरुष ऐसे थे कि जिनके 'गणधर नामकर्म' का उदय होने वाला था। प्रभु ने उन्हें ' उत्पाद व्यय और ध्रोव्य' को त्रिपदी सुनाई। इसमें स पस्त आगम -श्रु ज्ञान का मूल रहा हुआ है । इस त्रिपदी को सुनते ही--जिनको ज्ञानावरणीय कर्म का विशिष्ट क्षयोपशम हो गया है और जो बीज को देख कर ही फल तक का स्वरूप समझ लेते हैं। ऐसे महापुरुषों ने चौदह पूर्व सहित द्वादशांगी की रचना कर ली। वे श्रुतकेवली - शास्त्रों के पारगामी हो गए । भगवान् सहस्राम्रवन उद्यान में से निकल कर जनपद विIर करने लगे।।
शुद्धभट का परिचय
ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान् कौशांबी नगरी के निकट पधारे । समवसरण की रचना हुई । भगवान् की धर्मदेशना प्रारम्भ हुई । इतने में एक ब्राह्मण युगल आया और भगवान् को वन्दन कर के बैठ गया। देशना पूर्ण होने के बाद ब्राह्मण ने हाथ जोड़ कर पूछा--" भगवन् ! यह इस प्रकार क्यों है ?" भगवान् ने फरमाया
" यह सम्यक्त्व की महिमा है । सम्यक्त्व सभी अनर्थों को नष्ट करने और सभी प्रकार की अर्थ-सिद्धि का एक प्रबल कारण है । जिस प्रकार वर्षा से दावाग्नि शान्त हो जाती है, उसी प्रकार सम्यक्त्व गुण से सभी प्रकार के वैर शान्त हो जाते हैं। जिस प्रकार गरुड़ को देख कर सर्प भाग जाता है, उसी प्रकार सम्यक्त्व गुण से सभी प्रकार की व्याधियाँ दूर हो जाती है । दुष्कर्म तो इस प्रकार लय हो ज ते हैं कि जिस प्रकार सूर्य के ताप से बर्फ पिघल कर लय हो जाता है । सम्यक्त्व गुण, चिन्तामणी के समान मनोरथ पूर्ण करता है। जिस प्रकार श्रेष्ठ गजराज, वारी जाति के बन्धन से बंध जाता है, उसी प्रकार सम्यग्दर्शनी आत्मा के देव का आयु अपने आप बँध जाता है और देव सानिध्य हो जाते हैं। यह तो सम्यग्दर्शन का साधारण फल है । इसका महाफल तो तीर्थंकर पद और मोक्ष प्राप्ति है।"
भगवान् के उत्तर से ब्राह्मण संतुष्ट हो गया, तब मुख्य गणधर महाराज ने ब्राह्मण के प्रश्न का रहस्य--श्रोताओं की जानकारी के लिए पूछा---
"भगवन् ! ब्राह्मण के प्रश्न और आपके उत्तर का रहस्य क्या है ?"
भगवान् ने कहा--" इस नगरी के निकट शालिग्राम नाम का एक गाँव हैं। उसमें दामोदर नामक ब्राह्मण रहता था। सोमा उसकी स्त्री का नाम था । 'शुद्धभट' नाम का उनके
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