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भ० अजितनाथजी
अर्हन्तमजितं विश्व-कमलाकर भास्करम् । अम्लानकेवलादर्श-संक्रांतजगतं स्तुवे । १॥ जयंत्यजितनाथस्य जितशोणमणिश्रियः । ननेन्द्रवदनादर्शाः पादपद्मद्वयीनखाः ॥२॥ कर्माहिपाशनिर्नाश-जांगुलिमन्त्र संनिभम् । अजितस्वामीदेवस्य चरितं प्रस्तवीम्यतः ॥ ३॥
-इस विश्व रूपी सरोवर के कमलों को अपने प्रकाश द्वारा विकसित करने में जो सूर्य के समान हैं, जिसने अपने केवलज्ञानरूपी दर्पण में तीन जगत् को प्रतिबिंबित कर लिया है, ऐसे परम पूजित भगवान् अजितनाथ की मैं स्तुति करता हूँ।
-रक्त वर्ण की मणियों की शोभा को जीतने वाले, प्रणाम करते हुए देवेन्द्र के मुख के लिए दर्पण रूप, ऐसे भगवान् अजितनाथ के दोनों चरण-कमल के नख जयवंत होवें।
___-अब कर्मरूपी सर्प के पास को नष्ट करने में जांगुलिमन्त्र के समान भगवान् अजितनाथ का चरित्र प्रारम्भ किया जाता है।
जबुद्वीप के मध्य भाग में महाविदेह क्षेत्र है। उसमें सीता नामक महा नदी के दक्षिण तट पर वत्स' नामक विजय है। वह ऋद्धि, सम्पत्ति और वैभव से युक्त है।
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