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________________ पंचसंग्रह : १० संज्वलन कषाय, वेद, हास्य-रति युगल, भय, जुगुप्सा, प्रत्याख्यानावरण आदि तीन कषाय और दृष्टि का प्रक्षेप करने से ये नौ उदयस्थान होते हैं । संज्वलनकषायचतुष्क में से किसी एक के उदय में पहला एक प्रकृतिक उदयस्थान, उसमें वेदत्रिक में से एक वेद का उदय मिलाने पर दो प्रकृति का उदयरूप दूसरा उदयस्थान, हास्यरति युगल के उदय को मिलाने पर चार प्रकृतिक उदय का तीसरा उदयस्थान, भय को मिलाने पर पाँच का चौथा उदयस्थान, जुगुप्सा मिलाने पर छह का पाँचवा, प्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क में से किसी एक का उदय होने पर सात का छठा उदयस्थान, अप्रत्याख्यानावरणकषायचतुष्क में से किसी भी एक का उदय होने पर आठ - प्रकृतिक सातवाँ, अनन्तानुबंधिकषायचतुष्क में से किसी एक का उदय होने पर न प्रकृति का आठवां और उसमें मिथ्यात्व का उदय बढ़ने पर दस प्रकृति का उदयरूप नौवाँ उदयस्थान होता है । ५० ये उदयस्थान प्रकृतियों के फेरफार से अनेक प्रकार के हैं । अतः अब उन प्रकारों को जानने का सूत्र बतलाते हैं । उदयस्थान प्रकारबोधक सूत्र दुगआइ दसंतुदया कसायभेया चउव्विहा ते उ । बारसहा वेयवसा अदुगा पुण जुगलओ दुगुणा ||२४|| शब्दार्थ - दुगआइ — दो से लेकर, दसंतुदया— दस तक के उदय, कसायभेया- कषाय के भेद से, चउव्विहा - चार प्रकार के, ते – वे, उ — और बारसहा -- बारह प्रकार के, वेयवसा-वेद के वश से, अदुगा- दो के सिवाय, पुण-पुनः, जुगलओ -- युगल के कारण, दुगुणा - दुगने । गाथार्थ - दो से लेकर दस तक के उदय कषाय के भेद से चार प्रकार के हैं । वेद के वश से बारह प्रकार के हैं और दो के सिवाय शेष उदय युगल के कारण दुगने होते हैं । विशेषार्थ - गाथा में प्रकृतियों के अंतर से उदयस्थानों के प्रकार हो सकने के कारण को स्पष्ट किया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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