SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २३ ४६ - इक्कीस-प्रकृतिक बंधस्थान सासादन गुणस्थान में होता है और सासादनगुणस्थान का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिका है अतः उतना ही इक्कीस-प्रकृतिक बंधस्थान का भी काल जानना चाहिये। अर्थात् सासादनगुणस्थान के जघन्य और उत्कृष्ट काल के समान इक्कीस-प्रकृतिक का जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह आवलिका प्रमाण काल जानना चाहिये ।। ___ इस प्रकार से मोहनीयकर्म के बंधस्थानों का समग्र वर्णन करने के बाद अब उदयस्थानों का निरूपण करते हैं। मोहनीयकर्म के उदयस्थान-- इगिद्गचउएगुत्तर आदसगं उदयमाहु मोहस्स । संजलणवेयहासरइभयदुगुछतिकसायदिट्ठी य ॥२३॥ शब्दार्थ-इगिदुगचउ-एक, दो, चार, एगुत्तर-आगे एक-एक अधिक, आदसगं-दस पर्यन्त, उदयमाहु-उदयस्थान कहे हैं, मोहस्स-मोहनीय कर्म के, संजलण-संज्वलन कषाय, वेय--वेद, हासरइभयदुगुछ -हास्य, रति, भय , जुगुप्सा, तिकसायदिट्ठी-तीन कषाय और दृष्टि, य-और। . ___ गाथार्थ-एक, दो, चार और तत्पश्चात् आगे एक-एक अधिक दस पर्यन्त मोहनीय के नौ उदयस्थान कहे हैं । वे संज्वलनकषाय, वेद, हास्य-रति, भय, जुगुप्सा, तीन कषाय और दृष्टि के प्रक्षेप करने पर होते हैं। विशेषार्थ-गाथा में मोहनीयकर्म के उदयस्थानों की संख्या और उनके बनने के कारण को स्पष्ट किया है। मोहनीयकर्म के एक, दो, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ और दस प्रकृतिक ये नौ उदयस्थान हैं। इन उदयस्थानों का प्रतिपादन पश्चानुपूर्वी के अनुसार अनिवृत्तिबादरगुणस्थान से प्रारम्भ करते हैं १ सुगम बोध के लिये मोहनीयकर्म संबन्धी बंधस्थानों का प्रारूप परिशिष्ट में देखिये। For Private & Personal use only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy