SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ ( ३५ ) ४. गुणास्थानापेक्षा मोहनीय कर्म के उदयस्थानों के संभव भंगों का प्रारूप ५. गुणस्थानापेक्षा मोहनीय कर्म के पूर्वोक्त उदयस्थानों की चौबीसी की प्राप्ति का प्रारूप ६. मोहनीय कर्म के सत्तास्थानों का प्रारूप ७. गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के सत्तास्थान दर्शक प्रारूप ८. मोहनीय कर्म के बंध-उदय-सत्तास्थानों का संवेध दर्शक प्रारूप ३७१ ३७४ ३७७ ६. गुणस्थानों में नामकर्म के बंधस्थानों का प्रारूप १०. तत् तत् गति प्रायोग्य नामकर्म के बंधस्थानों के भंग ११. जीवस्थानों में नामकर्म के उदयस्थान और भंगों का प्रारूप १२. दिगम्बर सप्ततिकानुसार मूल एवं उत्तर प्रकृतियों के बंध-उदय-सत्व के संवेध भंगों का प्रारूप ३८२ ३६६ ३६८ १३. दिगम्बर सप्ततिकानुसार गुणस्थानों में मूल प्रकृतियों के बंध, उदय, सत्व का संवेध १४. दिगम्बर सप्ततिकानुसार चौदह जीवस्थानों में मूल प्रकृतियों के बंध, उदय, सत्व स्थान १५. दिगम्बर सप्ततिकानुसार गुणस्थानों में ज्ञानावरण और अन्तराय कर्म की उत्तरप्रकृतियों के बंधादि स्थान १६. दिगम्बर सप्ततिकानुसार गुणस्थानों में दर्शनावरण कर्म की उत्तरप्रकृतियों के बंधादि स्थान १७. दिगम्बर सप्ततिकानुसार गुणस्थानों में वेदनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियों के बंधादि स्थान ३६६ ४०० ४०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy