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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १४२
३२६ मोहगुणस्थान पर्यन्त जैसे पूर्व में बंधादि का निरूपण किया है, उसी प्रकार समझना चाहिये । केवलज्ञान मार्गणा में सयोगि और अयोगि केवली इन दो गुणस्थानों के कथनानुरूप जानना चाहिये ।
चारित्रमार्गणा के भेद सामायिक और छेदोपस्थापना में प्रमत्तसंयत से लेकर अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थान, परिहारविशुद्धि में प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थान, सूक्ष्मसंपराय में सूक्ष्मसंपरायगुणस्थान और यथाख्यातचारित्र में उपशांतमोह से अयोगिकेवली गुणस्थान, देशविरति में देशविरत गुणस्थान और असंयममार्गणा में मिथ्यादृष्टि से अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक जिस प्रकार से बंधादि का कथन किया है, तदनुरूप समझना चाहिये। ____दर्शनमार्गणा के भेद चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन में मिथ्यादृष्टि से लेकर क्षोणमोह गुणस्थान पर्यन्त, अवधिदर्शन में अविरतसम्यग्दृष्टि से लेकर क्षीणमोह गुणस्थान पर्यन्त और केवलदर्शन में सयोगि-अयोगि केवली गुणस्थान के समान बंधादि जानना चाहिये।
लेश्यामार्गणा के भेद आदि की पांच (कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म) लेश्याओं में मिथ्यादृष्टि से लेकर अप्रमत्तसंयतगुणस्थान पर्यन्त और शुक्ललेश्या में मिथ्यादृष्टि से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान पर्यन्त के तुल्य बंधादि समझना चाहिये।
भव्य मार्गणा के भेद भव्य में मिथ्यादृष्टि से लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान तक और अभव्यमार्गणा में मिथ्यात्वगुणस्थान की तरह बंधादि जानना चाहिये।
सम्यक्त्वमार्गणा के भेद क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में अविरतसम्यगदृष्टि गुणस्थान से लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक, औपशमिक१. आदि को तीन लेश्याओं में पहले से चौथे अथवा छठे, तेज, पद्म, लेश्या
में सात और शुक्ल लेश्या में पहले से तेरह गुणस्थान कर्मग्रन्थ में बताये हैं । लेकिन यहां आद्य पांच लेश्याओं में सात गुणस्थान कहे हैं । विज्ञजनों से समाधान की अपेक्षा है ।
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