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पंचसंग्रह : ६ इस प्रकार से चौदह जीवस्थानों में नामकर्म के उदयस्थान जानना चाहिये । अब सत्तास्थानों का निरूपण करते हैं।
सत्तास्थान-पर्याप्त संज्ञी के अतिरिक्त शेष तेरह जीवभेदों में पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं। इनमें तीन तो अध्र व संज्ञा वाले छियासी, अस्सी और अठहत्तर प्रकृतिक तथा शेष दो बान और अठासी प्रकृतिक हैं । इस प्रकार कुल पाँच सत्तास्थान होते हैं।
अठहत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान सूक्ष्म-बादर एकेन्द्रिय, तेज, वायुकायिक के अपने चारों उदयस्थानों में होता है एवं तेज, वायुकायिक में से निकलकर पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय में उत्पन्न हुए को इक्कीस और चौबीस प्रकृतिक इस प्रकार दो उदयस्थानों में और द्वीन्द्रियादि तिर्यचों में उत्पन्न हुआ हो, उसको इक्कीस और छब्बीस प्रकृतिक इस प्रकार दो उदयस्थान में होता है । शेष उदयस्थानों में नहीं होता है।
संज्ञी में गुणस्थान के क्रम से बारह सत्तास्थान होते हैं, जो पूर्व में कहे गये अनुसार जानना चाहिये । ___इस प्रकार चौदह जीवस्थानों में नामकर्म के सत्तास्थान जानना चाहिये और इसके साथ ही चौदह जीवस्थानों में नामकर्म के बंध, उदय और सत्ता के स्थानों का निरूपण पूर्ण हुआ। अब गति आदि मार्गणाओं में बंध, उदय और सत्तास्थानों के सम्बन्ध में सत्पदप्ररूपणा करते हैं। मार्गणाओं में बंधादि स्थानों को सत्पदप्ररूपणा
बझंति सत्त अट्ठ य नारयतिरिसुरगईसु कम्माइं।
उदीरणावि एवं संतोइण्णाइं अट्ठ तिसु ॥१४०॥ शब्दार्थ-बमंति-बांधते हैं, सत्त अट्ठ-सात आठ, य-और, नारयतिरिसुरगईसु-नरक, तिर्यंच और देवगति में, कम्माई-कर्म, उदीरगावि-उदीरणा भी, एवं-इसी प्रकार, संतोइण्णाई-सत्ता और उदय में, अठ्ठ-आठ, तिसु-तीन में ।
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