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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३०
३०६ योग्य ही बंध करने वाले होने से उक्त बन्धस्थानों में से देवगतियोग्य उनतीस और तीस प्रकृतिक एवं मनुष्य गति योग्य तीर्थंकरनाम सहित तीस प्रकृतिक बन्धस्थान और उसके भंगों के सिवाय शेष मनुष्य तिर्यंच गति योग्य समस्त ऊपर के बधस्थानों और उन बंधस्थानों के होने वाले भंगों का बंध करते हैं। इसका विवेचन पूर्व में किया जा चुका है।
पंचेन्द्रिय मार्गणा में आठ बंधस्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैंतेईस, पच्चीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकत्तीस और एक प्रकृतिक । पंचेन्द्रिय में चारों गति के जीवों का समावेश होता है और वे अपनी-अपनी योग्यतानुसार उक्त बंधस्थानों का बंध करते हैं। यानि सर्व गति योग्य ये समस्त बंधस्थान और इनके भंग पूर्व में जिस प्रकार से कहे हैं, उसी प्रकार इस पंचेन्द्रिय मार्गणा में भी समझ लेना चाहिए।
अब इन इन्द्रिय मार्गणा के भेदों में उदयस्थानों का निर्देश करते हैं-एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय में अनुक्रम से पाँच, छह और ग्यारह उदयस्थान होते हैं । एकेन्द्रिय के पाँच उदयस्थान इस प्रकार हैं--इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस प्रकृतिक । इन सभी उदयस्थानों का विचार पूर्व में किया जा चुका है। विकलेन्द्रियों में इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकत्तीस प्रकृतिक ये छह उदयस्थान होते हैं । इन उदयस्थानों का निरूपण भी पूर्व की तरह कर लेना चाहिए। ___ पंचेन्द्रियों के बीस, इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, इकत्तीस, आठ और नौ प्रकृतिक इस प्रकार ग्यारह उदयस्थान होते हैं। चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान मात्र एकेन्द्रिय में ही होता है, इसलिए उसका निषेध किया है। मनुष्यादि भिन्न-भिन्न गति में जिस प्रकार से पूर्व में उदयस्थानों का कथन किया है उसी प्रकार वे सभी यहाँ भी जानना चाहिए। उदयस्थान और
उनके कुल भंगों में से एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय संबंधी उदयस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only
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