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________________ पंचसंग्रह : १० अब संवेध का निर्देश करते हैं - एकेन्द्रिययोग्य तेईस प्रकृतियों के बंधक मनुष्य को इक्कीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस प्रकृतिक ये सात उदयस्थान होते हैं । स्वभावस्थ और वैक्रिय मनुष्य तेईस प्रकृतियों का बंध करता है । इसलिये तद्योग्य उदयस्थानों को ग्रहण किया है शेष केवली और आहारकसंयत के उदयस्थान यहाँ नहीं होते हैं । 7 इसका आशय यह हुआ कि तेईस प्रकृतियों के बंधक स्वभावस्थ मनुष्य को इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस तीस प्रकृतिक ये पाँच उदयस्थान तथा वैक्रिय मनुष्य को पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस प्रकृतिक ये चार उदयस्थान होते हैं । जिनके भंगों का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है तथा पच्चीस और सत्ताईस प्रकृतियों का उदय वैक्रियशरीरी की दृष्टि से समझना चाहिये । ३०४ 1 उक्त प्रत्येक उदयस्थान में चार-चार सत्तास्थान होते हैं । जो इस प्रकार हैं- बानवं, अठासी, छियासी और अस्सी प्रकृतिक । मात्र वैक्रियशरीरी को प्रत्येक उदयस्थान में बानव और अठासी प्रकृतिक इस प्रकार दो-दो सत्तास्थान होते हैं । शेष सत्तास्थान जो तीर्थंकर, क्षपकश्रेणि, केवली और अन्यगति आश्रयी होते हैं, वे यहाँ संभव नहीं हैं । क्योंकि एकेन्द्रिययोग्य तेईस प्रकृतियों का बंध मिथ्यादृष्टि को ही होता है, जिससे वहाँ संभव सत्तास्थान ग्रहण करना चाहिये । सब मिलाकर चौबीस सत्तास्थान होते हैं । पर्याप्त एकेन्द्रिययोग्य और अपर्याप्त विकलेन्द्रियादि योग्य पच्चीस प्रकृतियों के बंधक और एकेन्द्रिययोग्य छब्बीस प्रकृतियों के बंधक को भी ऊपर कहे अनुसार उदयस्थान और उन उदयस्थानों में सत्तास्थान जानना चाहिये । मनुष्यगतियोग्य उनतीस और तीस प्रकृतियों के बंधक के लिये भी इसी प्रकार समझना चाहिये । नरकगतियोग्य अट्ठाईस प्रकृतियों के बंधक मनुष्य को सिर्फ तीस प्रकृति रूप एक उदयस्थान होता है । क्योंकि पर्याप्त मिथ्यादृष्टि मनुष्य ही नरकगतियोग्य बंध करता है । उस समय बानवै, अठासी I For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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