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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६ २६७ पचहत्तर प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान तीर्थंकरनामकर्म की सत्ता बिना के जीवों के तथा अस्सी, छियत्तर प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान तीर्थंकरनाम की सत्तावालों के होते हैं। ___सयोगिकेवलीगुणस्थान-सयोगिकेवली भगवन्तों को बीस, इक्कीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक इस तरह आठ उदयस्थान होते हैं। इन आठ उदयस्थानों और इनके भंगों का विचार सामान्य से जहां नामकर्म के उदयस्थानों का विचार किया है तदनुरूप जानना चाहिये। सत्तास्थान अस्सी, उन्यासी, छियत्तर और पचहत्तर प्रकृतिक इस प्रकार चार होते हैं। उनमें उक्त उदयस्थानों में से जो-जो उदयस्थान सामान्य केवली को होते हैं उनको उन्यासी और पचहत्तर में से कोई भी सत्तास्थान होता है और जो उदयस्थान तीर्थंकर भगवन्तों को होते हैं, उनमें अस्सी और छियत्तर में से कोई भी सत्तास्थान होता है । जिनका दर्शक प्रारूप इस प्रकार है__ सयोगिकेवली गुणस्थान में नामकर्म के उदय और सत्तास्थानों के संवेध का प्रारूप बधस्थान उदयस्थान सत्तास्थान ७६, ७५ प्र. ० mor 9 99॥ ७६, ७५ ,, 0 0 ७६, ७५ ८०, ७६, ७६, ७५ प्र. ८०, ७६, ७६, ७५ ,, ८०, ७६ प्र. ० योग x ८ । Jain Education International For Private & Personal use only mellorary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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