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सप्ततिका - प्र
२६५
संवेध जानना चाहिये । सुगम बोध के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार
है
अपूर्वकरणगुणस्थान में नामकर्म के बंधादिस्थानों के संवेध का
प्रारूप
बंधस्थान
२८ प्र.
२६,
३०,,
- प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६
३१,,
१
"
योग ५
उदयस्थान
३० प्र.
३०
"
३० "
ܙ ܙ ܘ܆
३०
17
सत्तास्थान
८८ प्र.
८६ "
६२,,
६३,"
८, ८६, ६२, ६३ प्र.
८
अनिवृत्तिबादर संप रायगुणस्थान के बंधादि स्थानों का निरूपण इस प्रकार हैं
इस गुणस्थान में यशः कीर्ति नाम का बंध रूप एक बंधस्थान और तीस प्रकृति का उदय रूप एक उदयस्थान है और सत्तास्थान तेरानवै, बानवे, नवासी, अठासी, अस्सी, उन्यासी, छियत्तर और पचहत्तर प्रकृति रूप आठ होते हैं । उनमें से प्रथम चार उपशमश्रेणि की अपेक्षा और क्षपक श्रेणि में जब तक तेरह प्रकृतियों का क्षय नहीं हुआ होता है, तब तक होते हैं और तेरह प्रकृतियों का क्षय होने के बाद अम्तिम चार सत्तास्थान होते हैं ।
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