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पंचसंग्रह : १० पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान में छहों सत्तास्थान होते हैं। इनका विचार पूर्ववत् इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान जैसा करना चाहिये।
छब्बीस प्रकृतियों के उदय में नवासी प्रकृतिक के सिवाय पांच सत्तास्थान होते हैं और उनका विचार पूर्ववत् करना चाहिये । इस उदयस्थान में नवासी प्रकृतिक सत्तास्थान न होने का कारण यह है कि मिथ्यादृष्टि होने पर नवासी प्रकृतिक सत्तास्थान नरक में उत्पन्न होते नारकी को होता है, अन्य किसी को नहीं होता है। नारक को छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता, इसीलिये इस उदयस्थान में नवासी प्रकृतिक सत्तास्थान का निषेध किया है। __ सत्ताईस प्रकृतिक उदयस्थान में अठहत्तर प्रकृतिक के सिवाय शेष पाँच सत्तास्थान होते हैं। उनमें नवासी प्रकृतिक सत्तास्थान पूर्वोक्त स्वरूप वाले नारकी की अपेक्षा होता है । पूर्वोक्त स्वरूप वाले नारक को अपने सभी उदयस्थानों में नवासी प्रकृतियों की सत्ता होती है। बानवै और अठासी प्रकृतियों की सत्ता देव, नारक, मनुष्य, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रिय इन सभी को होती है। छियासी, अस्सी प्रकृतिक सत्तास्थान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यापेक्षा होता है। इस उदयस्थान में अठहत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान तो होता नहीं है । क्योंकि सत्ताईस प्रकृतियों का उदय तेज और वायुकाय के जीवों के सिवाय आतप या उद्योत के उदय वाले एकेन्द्रियों अथवा नारकों और देवों के होता है। उनको अठहत्तर प्रकृतिक सत्तास्थान होता नहीं है। क्योंकि उनको अवश्य मनुष्यद्विक का बंध संभव है।
अट्ठाईस प्रकृतियों के उदय में भी यही पाँच सत्तास्थान जानना चाहिये । उनमें से अठासी, नवासी और बानवै प्रकृतिक का विचार तो पूर्व की तरह करना चाहिये। यानि देवों में बानवै और अासी प्रकृतिक ये दो, नारकों में बानवै, नवासी और अठासी प्रकृतिक ये तीन और मनुष्य तिर्यंचों में बान और अठासी प्रकृतिक ये दो सत्ता
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