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पंचसंग्रह : १०
शब्दार्थ - मोसवुगे - मिश्रद्विक में ( औदारिकमिश्र वैक्रियमिश्र में ), कम्मइए - कार्मण काययोग में, अणउदयविवज्जियाउ - अनन्तानुबंधि के उदय बिना की, मिच्छस्स - मिध्यादृष्टि के, चवीसाउ - चौबीसी, ण-नहीं, चउरो - चार, तिगुणाओ-- त्रिगुणी, तो— फिर, रिणं कम करना, ताओइनमें से ।
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asविमीसम्म - वैक्रियमिश्र में, नपुं सवेओ -- नपुंसकवेद, न नहीं, सासणे - सासादन में, होइ― होता है, चडवीसचउक्काओ - चार चौबीसियों में से, अओ - अतः, तिभागा- तीसरा भाग, रिणं - कम करना, तस्स -
उसका ।
कम्मयविउध्विमीसे—कार्मण और वैक्रिय मिश्र योग में, इत्थोवेओस्त्रीवेद, न होइ नहीं होता है, सम्मस्स - अविरत सम्यग्दृष्टि के, अपुमिस्थिनपुंसक वेद और स्त्रीवेद, उरलमीसे—– औदारिकमिश्र में, तच्चउवीसाणउसको चौबीसी के, रिणमेय - कम करना चाहिये ।
आहारगमीसेसु - आहारक और आहारकमिश्रयोग में, इत्थीवेओस्त्रीवेद, न होइ नहीं होता है, उ-और, पत्ते -- प्रमत्तसंयत गुणस्थान में, दोणि तिभागाउ - दो तृतीयांश भाग, रिणं कम करना, अपमत्तजइस्सअप्रमत्तयति के, उ — और, तिमागो— तीसरा भाग ।
गाथार्थ - मिश्रद्विक और कार्मण काययोग में वर्तमान मिथ्यादृष्टिको अनन्तानुबंध के उदय बिना की चौबीसी संभव नहीं हैं । अतः त्रिगुणी वे चार चौबीसियां कम करना चाहिये ।
सासादन गुणस्थान में वैक्रियमिश्र योग में नपुसंकवेद का उदय नहीं होता है । अतएव उसकी चार चौबीसियों में से तीसरा भाग कम करना चाहिये ।
अविरतसम्यग्दृष्टि को कार्मण और वैक्रिय मिश्र में स्त्रीवेद नहीं होता है और औदारिकमिश्र में नपुसंक और स्त्रीवेद नहीं होता है । इसलिये उसकी चौबीसी के असंभव भंग कम करना चाहिये ।
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