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________________ सप्ततिका - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२० २३५ योगों को कम करने पर दस योग ही होते हैं । इसलिये दस के साथ चार को गुणा करने पर चालीस होते हैं । अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में आठ चौबीसी होती हैं। इस गुणस्थान में मरण संभव होने से अपर्याप्तावस्थाभावी पूर्वोक्त तीन योग होते हैं । अतएव यहां तेरह योग संभव होने से तेरह के साथ आठ का गुणा करने पर एक सौ चार होते हैं । देशविरतगुणस्थान में आठ चौबीसी होती हैं । अपर्याप्तावस्था में देशविरत गुणस्थान संभव नहीं होने से यहां औदारिकमिश्र और कार्मण काययोग यह दो योग एवं आहारकद्विक योग भी नहीं होते हैं, कुल ग्यारह योग होते हैं । इन ग्यारह योगों को आठ से गुणा करने पर अठासी होते हैं । प्रमत्तसंयत गुणस्थान में आहारकद्विक योग होने से तेरह योग होते हैं । यहाँ आठ चौबीसी होती हैं । इसलिये तेरह को आठ से गुणा करने पर एक सौ चार होते हैं । अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में आहारकमिश्र और वैक्रियमिश्र योग नहीं होते हैं एवं अपर्याप्तावस्था भावीऔदारिक मिश्र तथा कार्मण काययोग भी नहीं होने से ग्यारह योग होते हैं । यहाँ चौबीसी आठ होती हैं । जिससे ग्यारह को आठ से गुणा करने पर अठासी होते हैं । अपूर्वकरण गुणस्थान में चार चौबीसी हैं । यहां मनोयोग चार, वचनयोग चार और औदारिक काययोग कुल नौ योग होते हैं । अतएव को चार से गुणा करने पर छत्तीस होते हैं । उपर्युक्त सब मिलाकर छह सौ सोलह चौबीसी होती है । उनको चौबीस से गुणा करने पर चौदह हजार सात सौ चौरासी तथा द्विकोदय और एकोदय के सत्रह भंग होते हैं। नौवें और दसवें गुणस्थान में योग नौ होते हैं । इसलिये सत्रह के साथ नौ का गुणा करने पर एक सौ त्र ेपन होते हैं । उनको पूर्व राशि में मिलाने पर चौदह हजार नौ सौ सैंतीस उदयभंग होते हैं । I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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