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________________ २२० पंचसंग्रह : १० किस गति वाले को कौन-कौन गुणस्थान होते हैं और किस गुणस्थान पर्यन्त किस गोत्र का बंध या उदय होता है, इसका विचार उस-उस गति में जो भंग घटित हो सकता हो, उसे स्वयं घटित कर लेना चाहिये। ___गोत्रकर्म के भंगों को गुणस्थानों में घटित करने के बाद अब मोहनीयकमं के बंध, उदय और सत्तास्थानों के संवेध का निरूपण करने के पूर्व तत्संबन्धित विशेष कथनीय का विवेचन करते हैं। गुणस्थानों में मोहनीय कर्म के पदप्रमाण ओहम्मि मोहणीए बंधोदयसंतयाणि भणियाणि । अहुणाऽवोग्गडगुण उदयपयसमूह पवक्खामि ॥११॥ जा जंमि चउव्वीसा गुणियाओ ताउ तेण उदएणं । मिलिया चउवीसगुणा इयरपएहिं च पयसंखा ॥११२॥ सत्तसहस्सा सट्ठीए वज्जिया अहव ते तिवण्णाए। इगुतीसाए अहवा बंधगभेएण मोहणिए ॥११३॥ शब्दार्थ-ओहम्मि-सामान्य से, मोहणीए-मोहनीय कर्म के विषय में, बंधोदयसंतयाणि-बंध, उदय और सत्तास्थान, भणियाणि-कहे हैं, अहणा-अब, अवोग्गडगुणउदयपयसमूह-अव्याकृतोदय (सामान्य उदय) और गुणस्थानों के उदय के पद समूह को, पवक्खामिकहूंगा। ___ जा–जितनी, अंमि-जिसमें, चउग्वीसा-चोबीसी, गुणियाओ-गुणाकार करना, ताउ-उनका, तेण-उसके, उदएणं-उदय के साथ, मिलिया-जोड़ करना, चउवीसगुणा-चौबीस से गुणा करना, इयरपएहि-इतर पदों से, चऔर, पयसंखा-पद संख्या ।। सत्तसहस्सा-सात हजार, सट्ठीए-साठ से, वज्जिया-रहित, अहवअथवा, ते-वे, तिवण्णाए-त्रेपन, इगुतीसाए-उनतीस, अहवा–अथवा, बंधगभेएण-बंधकों के भेद से, मोहणिए-मोहनीय कर्म के । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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