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________________ पंचसंग्रह : १० उदयस्थानों में भी पांच सत्तास्थान होते हैं । सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक इन पांच उदयस्थानों में अठत्तर के अलावा चार-चार सत्तास्थान होते हैं । इनका विचार पूर्व में किये तेईस प्रकृतिक बंधस्थान के अनुरूप यहाँ भी कर लेना चाहिये । २०२ मनुष्यगति योग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और तियंच पंचेन्द्रियों को तथा तियंचगति और मनुष्यगति योग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर मनुष्यों को यथायोग्य रीति से अपने उदय में रहते अठत्तर के सिवाय बानवे, अठासी, छियासी और अस्सी प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यगति योग्य उनतीस प्रकृतियों का बंध करने पर अपने-अपने उदय में वर्तमान देवों और नारकों को बानवे एवं अठासी प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं । मात्र तीर्थंकरनाम की सत्तावाले मिथ्यादृष्टि नारक को मनुष्यगतियोग्य उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर पांचों उदयस्थानों में नवासी प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । क्योंकि जो तीर्थंकरनाम की सत्तावाला आहारकचतुष्क की सत्ता बिना का हो उसे मिथ्यात्वगुणस्थान में एवं नरक में जाना सम्भव है । इसलिये तेरान में से आहारकचतुष्क की सत्ता को कम करने पर नवासी प्रकृतियां सत्ता में रहती हैं ! तीर्थंकरनाम के साथ उनतीस प्रकृतियों को बांधने पर इक्कीस प्रकृतिक उदय में वर्तमान अविरतसम्यग्दृष्टि मनुष्य को तेरानवे और नवासी प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं । इसी तरह पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस और तीस प्रकृतियों के उदय में भी यही दो-दो सत्तास्थान होते हैं । मात्र अपने-अपने उदय में वर्तमान आहारकसंयत को तेरानवै प्रकृति रूप एक ही सत्तास्थान होता है । इसी प्रकार सामान्य से उनतीस प्रकृतियों के बंध और इक्कीस प्रकृतियों के उदय में सात सत्तास्थान, चौबीस प्रकृतियों के उदय में पांच, पच्चीस प्रकृतियों के उदय में सात, छब्बीस प्रकृतियों के उदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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